ग़ज़ल
रदीफ़- हैं
क़ाफ़िया- आते
212 1222 212 1222
रोज रात ख़्वाबों में, आके वो जगाते हैं,
नींद को उड़ाकर के, यार वो सताते हैं।
चाँद अफताबों सा, हुस्न तो दिखाये पर
बादलों में छुपकर के, यार वो जलाते हैं।
फूल बाग खुश्बू बन, वो फ़िज़ा बुलाये पर,
छू लिया अगर उनको, कांटे वो चुभाते हैं।
साँस मेरी थम जाती, धड़कने भी रुक जाती,
आसमां चढ़ाकर जब, प्यार से गिराते हैं।
इश्क़ रोग कैसा है, क्या *प्रियम* सुनाए अब?
आग का जो दरिया है, डूब पार जाते हैं।
©पंकज प्रियम
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