Friday, April 3, 2020

804. कोरोना देखते देखते

ग़ज़ल

देख लो क्या हुआ देखते-देखते,
रोग कैसा बढ़ा देखते-देखते।

खौफ़ में सब अभी जी रहे हैं यहाँ,
चैन सबका लुटा देखते -देखते।

दर्द सबको यहाँ चीन ने जो दिया,
विश्व पूरा जला देखते-देखते।

कैद घर में हुए क्या ख़ता थी भला
दण्ड सबको मिला देखते-देखते।

मरकज़ों से बढ़ा रोकना है कठिन
बढ गया दायरा देखते-देखते।

थूकते हैं उन्हीं पे करे जो दवा
जग बना है बुरा देखते-देखते।

हाल अब क्या सुनाए *प्रियम* आपको,
दर्द सबको हुआ देखते-देखते।

©पंकज प्रियम

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