समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
देखकर ये भारत भी हैरान हुआ जाता है, कि कोई अपना भी शैतान हुआ जाता है। दिल में बसाया हरवक्त हिंदुस्तान ने राणा- दौर संकट में तू मुसलमान हुआ जाता है!! ©पंकज प्रियम
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