Saturday, April 4, 2020

808. दिल नहीं दीप जलायें

अपना दिल नहीं, दीप जलायें।
देश मे वाकई जाहिलों की कमी नहीं है। सबकुछ आईने में साफ दिख रहा है कि मरकज़ के जमातियों के कारण कोरोना का संक्रमण 68 प्रतिशत बढ़ गया और ये देश के सभी दिग्गज डॉक्टर कह रहे हैं।प्रशासन ने पुष्टि कर दी। जब इलाज के लिए डॉक्टर गये तो जाहिलों की जमात ने उनलोगों को दौड़ाकर हत्या करने की कोशिश की, इलाज कर रहे डॉक्टर और नर्सो पर थूकने लगे, वार्ड में।नर्सो के समक्ष नङ्गे घूम रहे, बीड़ी सिगरेट मांग रहे है जाहिल । एक व्यक्ति नोटों को नाक और मुँह में घुसेड़कर खुलेआम कोरोना फैलाने की धमकी दे रहा है। एक फलवाला फल में थूक लगा रहा है किसी घृणित सोच है फिर भी कुछ लोग तुष्टीकरण के लिए एक तो तब्लीगी जमात के जाहिलपन का समर्थन कर रहे हैं, और सिर्फ मोदी विरोध में दीप जलाने की अपील का मज़ाक उड़ा रहे हैं। कितने नासमझ हो यार यह किसने कहा कि दीपक जलाने से वायरस मरेंगे। प्रधानमंत्री ने तो बिल्कुल ही नहीं कहा।  यह तो लोगो के मन से नैराश्य को निकाल कर प्रकाशित करने की एक पहल है। लॉकडाउन के हालात में वाकई लोग निराश हैं, एक खौफ़ अंदर से खाये जा रहा है कि पता नहीं क्या होगा। कोरोना सुरसा की भांति पूरे विश्व मे फैलता जा रहा है। लोग अपनो से दूर हैं मैं खुद एक माह से अपने घर नहीं जा सका हूँ। मेरे बूढ़े माँ-बाप और परिवार के अन्य सदस्य अकेले हैं उनतक पहुच नहीं पा रहा हूँ। छोटी सी छींक और खाँसी से मन विचलित हो जाता है कि कहीं संक्रमण तो नहीं हो गया। रात को नींद नहीं आती ,अभी 4 बजे किसी तरह सोया और 7 बजे उठ गया ,यह हाल बिल्कुल आपके साथ भी हो रहा होगा, अगर नहीं हो रहा है तो आप वाकई संवेदनहीन हैं जिन्हें देश दुनियां की चिंता नहीं। लोग किसी को अपने घर नहीं बुला रहे हैं, नजदीक बैठना नहीं चाहते, सब एक दूसरे को शक की निगाह से देख रहा है, लगता है जैसे बिल्कुल अकेले पड़ गए हो, सड़क की वीरानियाँ खौफ़ पैदा करती है, शहर का सन्नाटा मन को बैचेन करता है ऐसे माहौल से उबरने के लिए एकजुट होकर यह दीप जलाने की पहल है, और यह सिर्फ हमारे यहाँ नहीं विश्व के कई देशों में हो रहा है। जैसे अन्य घटनाओं में अपनी एकजुटता दिखाने, भय को दूर करने के लिए लोग मशाल या केंडल जुलूस निकालते हैं बस उसी तरह का एक प्रयास है। इससे खुद का मनोबल बढ़ता है कि हम अकेले नहीं वल्कि हजारों, लाखो लोग साथ खड़े हैं। अकेले दो कदम चलना मुश्किल होता लेकिन जब पूरा हुजूम साथ चलता है तो लोग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर पहाड़ पर्वत चढ़ जाते हैं। छोड़ दीजिए न सारी सियासती बातें बस अपने लिए, अपनों के लिए उम्मीद का एक दीप जलायें। जैसे कोई रैली, बंद, विरोध, समर्थन ,खुशी के मौके पर मशाल ,कैंडल जलाते हैं उसी तरह कोरोना के इस जंग में सबको एकजुट करने और आत्मबल बढ़ाने के उद्देश्य से ही एक दीप जलायें। अगर आज दीप नहीं जलाते है तो फिर कोई हक नहीं बनता दूसरे कार्यक्रमों में कैंडल और मशाल जलाने का। इसी तरह ताली बजाने पर लोगों ने बेवजह का अपना दिल जलाया था जबकि वह धन्यवाद था कोरोना के युद्धवीरों के लिए। लेकिन कहते हैं न जाहिलों को सिर्फ जाहिल और जाहिलपन पसन्द आता है। ऐसे एक भी व्यक्ति ने मरकज के तब्लीगी जमातियों के शर्मनाक करतूतों पर एक शब्द तक नहीं बोला, उल्टे उनकी तरफ़दारी कर रहे हैं। एक हैं राणा मुनव्वर साहब जो सम्मान लेते वक्त हिंदुस्तान के होते हैं और जब भी देश पर संकट आता है तो इन्हें अपना कौम पसन्द आने लगता है। अवार्ड वापस करने लगते हैं लेकिन जमातियों के जाहिलपन पर शर्म की एक शेर तो पढ़ी गयी नहीं उल्टे समर्थन कर बैठे।
©पंकज प्रियम

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