रामायण: हर प्रसंग प्रासंगिक-3
अफ़वाह न फैलायें, पहले अपने धर्मग्रंथों को पढ़ें।
©पंकज प्रियम
यह सच है कि ज्ञान-विज्ञान की सारी बातें हमारे प्राचीन धर्म गर्न्थो में वर्णित है लेकिन आजकल लोग बिना पढ़े लिखे किस तरह धर्मग्रन्थो की गलत व्याख्या कर दुष्प्रचार करने लगते हैं। यहाँ देखा जा सकता है। रामचरित मानस के इस पृष्ठ को यह कहकर प्रचारित किया जा रहा है कि इसमें कोरोना वायरस का जिक्र है। एक दोहे में चमगादड़ शब्द है तो लोगों ने इसे कोरोना से जोड़ दिया जबकि सही अर्थ यह है कि जो मनुष्य दूसरों की निंदा करते हैं वे चमगादड़ बनते हैं। इसी तरह काम, लोभ, मोह और मद को कफ़, पित्त और वायु रोग से तुलना की गई है। जिस दोहा 120 और 121 का जो अर्थ बताया जा रहा है कि पाप बढ़ने से चमगादड़ अवतरित होंगे और महामारी फैलेगी, जबकि। असल मे इस दोहे का अलग ही अर्थ है कि मनुष्य एक ही रोग से मर जाते हैं तो अनेक व्याधियों को कैसे सहेंगे और शांत चित्त कैसे रह सकेंगे। कृपया नीचे दिए गए चार तस्वीरों को देखें जिसमें प्रथम दो वायरल न्यूज है जो फैलाया जा रहा है। उसी की काट हेतु मैंने रामचरित मानस के असली अर्थ की व्याख्या करते दो पृष्ठों की तस्वीर खींच कर डाली है। कृपया उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ें और खुद समझें। इस ख़बर को वाइरल करने में कई तथाकथित बुद्धिजीवी, पत्रकार और साहित्यकार भी शामिल हो गए हैं। शायद उन्होंने कभी रामायण पढ़ी ही नहीं , अगर पढ़ते या दोहे के अर्थ को समझने की कोशिश करते तो यह भूल कदापि नहीं करते । कोई संस्कृत, पाली या उर्दू में नहीं लिखा है ,साधारण देवनागरी लिपि में अवधी में लिखे दोहे को भी जो न समझ पाये उसकी बुद्धि बलिहारी है। जब कई जगह इसे देखा तो मैंने विरोध किया। साक्ष्य के रूप में अपने रामचरित मानस की उन दोनों पृष्ठों की अर्थसहित व्याख्या डाल रहा हूँ कि तुलसीदास के इन दोहों का असली अर्थ क्या है? आप खुद पढ़ें और समझें किसी के भी वाइरल मैसेज को यूँ ही बिना पढ़े समझे प्रेषित करेंगे तो जाहिल और विद्वानों में क्या फ़र्क रहेगा? जो कोरोना को कुरआन से जोड़कर अल्लाह की देन बता रहे थे! कई लोगों ने तो यह दावा कर दिया था कि अल्लाह ने कोरोना उनको समाप्त करने के लिए भेजा है जो मुसलमानों को परेशान कर रहे हैं, शाहीनबाग की महिलाओं ने भी इसी तरह बयान दिया था कि कोरोना कुरान से जुड़ा है उनका कुछ अहित नहीं होगा! इस तरह के संदेशों से न केवल आप खुद मज़ाक के पात्र बनते हैं वल्कि हमारे धर्मग्रंथों का भी मज़ाक उड़ता है। कृपया कोई भी सन्देश शेयर करने से पूर्व उसकी पड़ताल अवश्य कर लें। बिना पढ़े लिखे जाने समझे कोई भी सन्देश शेयर कर देना मूर्खों का काम है जो भेड़चाल में चल पड़ते हैं।इसी तरह -ढोल गंवार शुद्र पशु नारि दोहे की गलत व्याख्या कर लोग नारी और दलित विरोधी करार देते हैं जबकि इसमें ताड़न का सभी शब्दों के साथ अलग अर्थ है। हिन्दू धर्मग्रंथों में ही नहीं अन्य के साथ भी यही होता रहा है। जैसे जिहाद
का अर्थ आतंकवाद और आत्मघाती मानव बमों से जुड़ गया है। भोले भाले युवा जिहाद के गलत अर्थ के कारण आत्मघाती मानव बम बनते रहे हैं। हमारे धर्मग्रंथो में जो भी उदाहरण दिए गए हैं वह सब अपराध, अनीति, अन्याय और दुराचार को रोकने का माध्यम है न की गलत करने के लिए। हमारे ग्रँथ हमें सदा सचेत करते हैं कि यह करोगे तो यह होगा और हकीकत भी वही है। लोग मज़ाक उड़ाकर भले न मानें लेकिन प्रकृति उन्हें सबक सीखा ही देती है। आज कोरोना ने सबको हमारी संस्कृति, संस्कार और पुरानी आदतों को अपनाने पर विवश कर दिया है जिसे अंधविश्वास और पाखंड कह कर सबने छोड़ दिया था। आज पूरी दुनिया भारत की सभ्यता और संस्कारों का अनुसरण करने को मजबूर है।
ठीक ही कहा गया है-
लीक-लीक पहिया चले, लीक ही चले कपूत।
लीक छोड़ तीनों चले, शायर, सिंह, सपूत।।
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