ग़ज़ल
2122 1212 22
रदीफ़-कर देखो
क़ाफ़िया- आल
यार कुछ तो ख़्याल कर देखो,
आज मुझसे सवाल कर देखो।
देखता रोज चाँद को हरदम,
आज तुम तो निहाल कर देखो।
इश्क़ के आब कौन है डूबा?
हाथ दरिया में डाल कर देखो।
दर्द होता अगर नहीं तो फिर,
दिल में कुछ दर्द पाल कर देखो।
अब प्रियम और क्या सुनाएगा,
जख़्म अपना सँभाल कर देखो।
©पंकज प्रियम
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