Wednesday, September 4, 2019

646. पलक

पलक

ये पलकें तुम्हारी, लगे क्यूँ है भारी,
निंदो से बोझिल या फिर है खुमारी।

पलकें गिराना  गिराकर उठाना,
निगाहें तुम्हारी बड़ी क़ातिलाना।
नज़र ये तुम्हारी है लगती कटारी
ये पलकें  तुम्हारी ...

पलकों पे कैसा ये रंग गुलाबी,
लगती तुम्हारी नज़र है शराबी।
नज़र को लगी नज़र की बीमारी
ये पलकें तुम्हारी ...

जगे रातभर जो वो होती जवानी,
आँखों ही आँखों में होती कहानी।
जुबाँ बन्द कहती नज़र ये तुम्हारी,

ये पलकें तुम्हारी, लगे क्यूँ है भारी
बोझिल नींदों से या फिर खुमारी।
©पंकज प्रियम

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