Thursday, December 12, 2019

749. झारखण्ड से आया हूँ


झारखण्ड की धरती से
मैं गीत सुनाने आया हूँ।

बस बोलना ही है गीत जहाँ,
बस चलना ही है नृत्य जहाँ।
जल-जंगल हरियाली छटा,
वो दृश्य दिखाने आया हूँ।
झारखण्ड की माटी का मैं,
बस प्यार लुटाने आया हूँ।।

जे नाची से बाँची रे,
रजधानी मोर राँची रे।
बिरसा मुंडा और जयपाल
अल्बर्ट एक्का वीर कमाल।
झारखण्ड के माही सा मैं,
छक्का उड़ाने आया हूँ।

सखुआ महुआ आम पलाश,
नगाड़ा मांदर साज है ख़ास।
सरहुल करमा और कोहबर,
पर्वत दरिया और निर्झर।
जुड़ा सखुआ फूलों का
शृंगार दिखाने आया हूँ।

पारसनाथ की चोटी में
मड़ुआ मकई की रोटी में।
बाबा बैद्यनाथ के आँगन में
गङ्गा बरसे सावन में।
बोलबम के नारों का
जयकार लगाने आया हूँ।

कोयला अभ्रख खूब जहाँ,
धरती खनिज अकूत यहाँ।
कण-कण में खुशहाली है,
उद्योग जगत की थाली है।
स्वर्णरेखा के रजकण का
मैं स्वर्ण बहाने आया हूँ।।

©पंकज प्रियम

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