Friday, July 26, 2019

614. यमुना का दर्द

यमुना पुकारे

कान्हा तुझको यमुना पुकारे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

देखो लो कैसा हाल हुआ है,
हाल मेरा बेहाल हुआ है।
शहर का सारा कचरा गिरे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

नहीं बहती है अविरल धारा,
चढ़ा आवरण कचरा सारा।
साँसे चलती अब धीरे-धीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

पहले तो मैं बस थी काली
जब से मिली मुझसे नाली,
महकने लगी हूँ मैं तीरे-तीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

खूब करते थे तुम जलक्रीड़ा
अब तो जल में है बस कीड़ा।
सड़ने लगी हूँ मैं अब धीरे-धीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

नहीं आती है अब गैया तोरी
छोड़ गयी है अब मैया मोरी।
आँसू बहती है तो नीरे-नीरे,
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

खत्म हुई क्या तेरी माया,
जीर्ण-शीर्ण सी मेरी काया।
मरने लगी हूँ मैं अब धीरे-धीरे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

आकर बेड़ा पार करो तुम
फिर मेरा उद्धार करो तुम।
मानव से मन अब मेरा हारे,
सब कुछ अब है हाथ तुम्हारे।

कान्हा तुझको यमुना पुकारे
आ जाओ फिर तुम मेरे तीरे।

©पंकज प्रियम
26जुलाई2019


3 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28 -07-2019) को "वाह रे पागलपन " (चर्चा अंक- 3410) पर भी होगी।

--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी

Dr (Miss) Sharad Singh said...

यथार्थपरक सुंदर रचना...

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति