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Friday, January 25, 2019

513.इश्क़ का रंग

इश्क़ का रंग
दरिया में समंदर कभी लहरा है क्या
दिल पे भी लगा कभी पहरा है क्या।
वक्त! अब और इम्तेहान न लो मेरा
इश्क़ में भला तू कभी ठहरा है क्या।
इश्क़ में अक्सर लहू अश्कों से बहा
इस हद से आगे कोई गुजरा है क्या।
लहू का हर कतरा यही अब कह रहा,
ये इश्क़ का रंग मुझसे गहरा है क्या?
सुर्ख तो इतना है इश्क़ का रंग प्रियम
जो चढ़ गया फिर कभी उतरा है क्या?
©पंकज प्रियम

Saturday, January 19, 2019

508.बदल जाएगा

मौसम बदल जाएगा
कदम तो यूँ ही फिसल जाएगा
हुश्न का जादू जो चल जाएगा।
देखो न इस कदर तुम अब मुझे
नादां ये दिल मेरा मचल जाएगा।
लहराओ न जुल्फों को इस कदर
तुझे देखके मौसम बदल जाएगा।
हुश्न का जलवा गर तुमने बिखेरा
पत्थर भी मोम सा पिघल जाएगा।
एक हसीन ख़्वाब सी है वो प्रियम
छूकर तो देख दिल बहल जाएगा।
©पंकज प्रियम

Friday, January 18, 2019

507.सफ़र बाकी है

◆ग़ज़ल
◆काफ़िया - अर
◆रदीफ़-बाकी है
-------------------------------
कदम को रोक ना लेना कुछ सफर बाकी है
मंजिल पाने को अभी कुछ डगर बाकी है।
चलना ही जीवन है कदम तू साथ ही रखना
अंधेरी रात के आगे भी एक सहर बाकी है।
गाँव-गली सब छूट गए अपने भी रूठ गए
मंजिलों के लिए अभी और शहर बाकी है।
बढ़ चुके इस कदर,ना रही खुद की कदर
दिल की रुसवाई में होना बेकदर बाकी है।
नफ़रतों की आग से दूर रहता है प्रियम
दिल में मुहब्बत का कुछ असर बाकी है।
©पंकज प्रियम

Friday, January 4, 2019

501.मंजर


वक्त भी अब कैसा मंजर दिखाने लगा है
बाप पर अब बेटा खंजर चलाने लगा है।
रिश्तों की मर्यादा इस कदर तार-तार हुई
के बाप ही बेटी की अस्मत चुराने लगा है।
दौलत का नशा इस कदर आंखों में चढ़ा
के आदमी ही आदमी को गिराने लगा है।
महलों का ख़्वाब उसने ऐसा ही दिखाया
के आदमी खुद बस्तियां जलाने लगा है।
धैर्य अपना इस कदर खो रहा है आदमी
के भीड़ में ही खुद सज़ा सुनाने लगा है।
दिखावे में इस कदर खो गया है आदमी
शवों के साथ भी सेल्फी खिंचाने लगा है।
वक्त इतना बेशरम हो गया है अब प्रियम
फ़टे कपड़ों का ही फैशन लुभाने लगा है।
©पंकज प्रियम

Thursday, January 3, 2019

499.मुहब्वत की सज़ा

रूह में समा दीजिये

हुश्न को इश्क़ से मिला दीजिये
मुहब्बत आंखों से पिला दीजिये।

महक उठे खुशबू से चमन सारा
चाहतों के फूल यूँ खिला दीजिये।

छोड़िए दुश्मनी की वजह सारी
दिल को दोस्ती से मज़ा दीजिये।

आपकी गिरफ्त में गुजरे जिंदगी
मुहब्बत की ऐसी सज़ा दीजिये।

मिट जाए प्रियम का वजूद सारा
अपनी रूह में ऐसे समा दीजिये।

©पंकज प्रियम

Sunday, December 23, 2018

488. आज़माती जिन्दगी

गज़ल-जिंदगी
काफ़िया-अर
रदीफ़-जिंदगी
(212 212 212 212)
आजमाती बड़ी हर सहर जिन्दगी
भागती दौड़ती सी शहर जिन्दगी।
सांस बोले सदा धड़कनों की जुबाँ
सांस पे ही टिकी ये सफ़र जिन्दगी।
हर कदम पे यहां चोट लगती बड़ी
ठोकरों से भरी यह डगर जिन्दगी।
हाल बदहाल करके घुमाती रही
खूबसूरत बड़ी ये भँवर जिन्दगी।
पुतलियों की तरह ये नचाती रही
डोर थामे सदा हर पहर जिन्दगी।
तितलियों की तरह ये लुभाती रही
गुनगुनाती सदा ये भ्रमर जिन्दगी।
धूप भी है खिला आंधियां भी चली
ये दिखाती प्रियम पे असर जिंदगी।
©पंकज प्रियम

Friday, December 21, 2018

487.मुस्कुराना सीखा है

* गज़ल
* काफ़िया - आना
* रदीफ़ - सीखा है
मुफ़लिसी में भी हमने मुस्कुराना सीखा है
अपने हर दर्द को दिल में छुपाना सीखा है।
गमों के साथ मेरी इस कदर गयी है दोस्ती
हर एक गम को सीने से लगाना सीखा है।
उल्फ़त की राह में चल पड़ी है ये जिंदगी
यादों में अपनी रात को जगाना सीखा है।
मुख्तसर-सी जिन्दगी मुहब्बत मेरी बन्दगी
मैंने जख्मों को लफ्ज़ों में बहाना सीखा है।
मौत का खौफ़ कहाँ दिखता तुझमें प्रियम
धड़कन को भी सांसों में नचाना सीखा है।
©पंकज प्रियम

Wednesday, December 19, 2018

485.इश्क के फूल

गज़ल
आजा आजा
इश्क़ की आग मेरे दिल में जगाने आजा
आजा आजा मुझे सीने से लगाने आजा।
प्यार के फूल मेरे दिल में खिलाने आजा
आजा आजा मुझे खुद से मिलाने आजा।
जाम पैमाग जो आँखों से छलकता तेरा
अपने होठों से वही जाम पिलाने आजा।
इश्क़ की आग जो सीने में जला रक्खा है
इश्क़ की आग से वो आग बुझाने आजा।
प्यार का ज्वार जो साँसों ने उठा रक्खा है
अपनी मौजों से ही उसको गिराने आजा।
जवां दिल जोश में जो होश गवां बैठा है
अपने आगोश में ले होश जगाने आजा।
तेरी यादों का 'प्रियम' दीप सजा रखा है
अपने हाथों से वही दीप जलाने आजा।
©पंकज प्रियम

Tuesday, December 18, 2018

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

दिल की ये आग भला कैसे बुझा पाऊंगा
आजा-आजा मेरे शोलों को बुझाने वाले।

मैं तेरे प्यार में जो नग़मे लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में रातों को जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को निगाहों में बसाये रखना
मेरी तस्वीर को ख़्वाबों में सजाने वाले।

ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

दिल की ये आग को कैसे मैं बुझा पाऊंगा
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे मैं बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

इस आग को अब कैसे मैं बुझा सकता हूँ
अब तो आजा मेरे शोलों को जलाने वाले।

मैं तेरे प्यार में नग़मे जो लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में जो हररात जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को तू दिल में बसाये रखना
मेरी हर बात को ही दिल से लगाने वाले।

ओ"प्रियम" कौन मिटाएगा दिल से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

Saturday, December 8, 2018

467.पहचान है

मुख़्तसर सी जिंदगी,मुहब्बत हमारी जान है
मुफ़लिसी में भी मुस्कुराहट मेरी पहचान है।
सबों की हंसी में ही ढूंढता हूँ मैं अपनी खुशी
आनन्द में ही रहना सदा,  मेरी पहचान है।
कौन अपना कौन पराया कभी ये देखा नहीं
हर किसी से अपनापन ही मेरी पहचान है।
मान-सम्मान की अपनी कोई हसरत नहीं
अंधेरों में जुगनू की रौशनी, मेरी पहचान है।
हर उदास चेहरे में जो खुशियाँ भरे प्रियम
बेजुबानों की जुबां बन जाना मेरी पहचान है।
©पंकज प्रियम

Thursday, November 29, 2018

463.छोड़ दूँ क्या?

छोड़ दूँ क्या?
पता है की कल तो मुझे भी है मरना
लेकिन मैं आज जीना छोड़ दूँ क्या?
पता है खंजर का काम करती है नैना
निगाहों का जाम पीना छोड़ दूँ क्या?
पता है दिलों के ज़ख्म यूँ नहीं भरते
मुहब्बत से ज़ख्म सीना छोड़ दूँ क्या?
पता है आग लग जाती है बरसातों में
मस्त सावन का महीना छोड़ दूँ क्या?
पता है प्रियम कोई सगा नहीं अपना
बचपन का दोस्त कमीना छोड़ दूँ क्या?
©पंकज प्रियम
29.11.2018
©पंकज प्रियम

Friday, November 9, 2018

471.आदमी कैसे खुदा हो जाएगा

खुद से कोई कैसे जुदा हो जाएगा
आदमी कोई कैसे खुदा हो जाएगा।
जिस्म से भले ही जान निकल जाए
रूह से कोई कैसे बेवफ़ा हो जाएगा।
जिस्म नहीं रूह तक मुझको जाना
सफ़र भला कैसे आसां हो जाएगा।
मुहब्बत पाक इबादत है जानेजाना
इश्क़ कर लो दिल नादां हो जाएगा।
दिल की बातें दिल को ही समझाना
मुहब्बत का वहीं फैसला हो जाएगा।
नहीं करना तू जल्दबाज़ी में फैसला
ग़लत फैसलों से फासला हो जाएगा।
दुनियां बहुत देखी है तुमने तो प्रियम
साथ चलने से तुझे हौसला हो जाएगा।
©पंकज प्रियम

472.आना चाहता हूँ

* गजल
* काफिया - आना
* रदीफ़ -- चाहता हूँ
गजल
आना चाहता हूँ
तेरी जिंदगी में इस कदर आना चाहता हूँ
जिस्म नहीं रूह में उतर जाना चाहता हूँ।
चलो माना तू खुद एक हसीन ख़्वाब है
तेरे ख़्वाब में हर पहर समाना चाहता हूँ।
चलो माना तेरा हुश्न बहुत लाज़वाब है
तेरे हुश्न को इश्क़ से सजाना चाहता हूँ।
चलो माना की तू दहकता आफ़ताब है
तेरे शोलों में खुद को जलाना चाहता हूँ।
चलो माना कि तू खुद महकता ग़ुलाब है
तेरी खुशबू से बदन महकाना चाहता हूँ।
चलो माना तू खुद ही बहकता शबाब है
तेरे हुश्न में खुद को बहकाना चाहता हूँ।
चलो माना कि ये दुनियां बड़ी खराब है
तुझे खुद पर भरोसा दिलाना चाहता हूँ।
चलो माना कि तू खुद नशा-ऐ-शराब है
होठों से तुझको जाम पिलाना चाहता हूँ।
चलो माना की तू खुद इश्क़ का खुदा है
तेरी इबादत में फूल मैं गिराना चाहता हूँ।
चलो माना कि तू खुद इक हसीं ग़ज़ल है
तेरी रदीफ़ से काफ़िया मिलाना चाहता हूँ।
चलो माना "प्रियम" का दिल शायराना है
तुझे अपनी सुंदर ग़ज़ल बनाना चाहता हूँ।
©पंकज प्रियम
09/11/2018

Thursday, November 8, 2018

470.होठों से जाम छलकता है


आँखों से पैगाम झलकता है
तेरे होठों से जाम छलकता है।

तेरा हुश्न ही लाज़वाब है ऐसा
लगे की रोज चाँद निकलता है।

एक मोड़ है जवानी का ऐसा
जहां पर यूँ कदम फिसलता है।

तू चाँद है या कहूँ आफ़ताब
तुझसे ही ये मौसम बदलता है।

तू ख़्वाब है या है हसीं ग़ुलाब
मिलने को क्यूँ दिल मचलता है?


दूर तुझसे जो रहता है प्रियम
दिल ये मुश्किल से सम्भलता है।
©पंकज प्रियम