Saturday, December 8, 2018

467.पहचान है

मुख़्तसर सी जिंदगी,मुहब्बत हमारी जान है
मुफ़लिसी में भी मुस्कुराहट मेरी पहचान है।
सबों की हंसी में ही ढूंढता हूँ मैं अपनी खुशी
आनन्द में ही रहना सदा,  मेरी पहचान है।
कौन अपना कौन पराया कभी ये देखा नहीं
हर किसी से अपनापन ही मेरी पहचान है।
मान-सम्मान की अपनी कोई हसरत नहीं
अंधेरों में जुगनू की रौशनी, मेरी पहचान है।
हर उदास चेहरे में जो खुशियाँ भरे प्रियम
बेजुबानों की जुबां बन जाना मेरी पहचान है।
©पंकज प्रियम

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