गज़ल-जिंदगी
काफ़िया-अर
रदीफ़-जिंदगी
काफ़िया-अर
रदीफ़-जिंदगी
(212 212 212 212)
आजमाती बड़ी हर सहर जिन्दगी
भागती दौड़ती सी शहर जिन्दगी।
आजमाती बड़ी हर सहर जिन्दगी
भागती दौड़ती सी शहर जिन्दगी।
सांस बोले सदा धड़कनों की जुबाँ
सांस पे ही टिकी ये सफ़र जिन्दगी।
सांस पे ही टिकी ये सफ़र जिन्दगी।
हर कदम पे यहां चोट लगती बड़ी
ठोकरों से भरी यह डगर जिन्दगी।
ठोकरों से भरी यह डगर जिन्दगी।
हाल बदहाल करके घुमाती रही
खूबसूरत बड़ी ये भँवर जिन्दगी।
खूबसूरत बड़ी ये भँवर जिन्दगी।
पुतलियों की तरह ये नचाती रही
डोर थामे सदा हर पहर जिन्दगी।
डोर थामे सदा हर पहर जिन्दगी।
तितलियों की तरह ये लुभाती रही
गुनगुनाती सदा ये भ्रमर जिन्दगी।
गुनगुनाती सदा ये भ्रमर जिन्दगी।
धूप भी है खिला आंधियां भी चली
ये दिखाती प्रियम पे असर जिंदगी।
ये दिखाती प्रियम पे असर जिंदगी।
©पंकज प्रियम
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