Tuesday, December 18, 2018

483.इश्क़ की आग

इश्क़ की आग  मेरे दिल में जगाने वाले
अब तो आजा मुझे रातों में जगाने वाले।

दिल की ये आग भला कैसे बुझा पाऊंगा
आजा-आजा मेरे शोलों को बुझाने वाले।

मैं तेरे प्यार में जो नग़मे लिखा करता हूँ
मुझको पागल ही समझते हैं जमाने वाले।

मैं तेरी याद में रातों को जगा करता हूँ
मुझको दीवाना भी कहते हैं बताने वाले।

मेरी चाहत को जमाने से छुपाये रखना
दिल के जज़्बात को दिल में छुपाने वाले।

इस मुहब्बत को निगाहों में बसाये रखना
मेरी तस्वीर को ख़्वाबों में सजाने वाले।

ऐ प्रियम कौन मिटाएगा दुनिया से गज़ल
जब तलक जिंदा हैं दिल को सताने वाले।

©पंकज प्रियम

No comments: