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Friday, August 30, 2019

638. मुलाकात

ग़ज़ल

2122 1122 1122 22
दिन नहीं होता अब रात नहीं होती है,
दिल नहीं लगता जब बात नहीं होती है।

चैन उड़ जाता जब दूर चली जाती वो,
पास में ख़ास मुलाकात नहीं होती है।

साँस थम जाती जब पास में आती वो,
आँख भर आती बरसात नहीं होती है।

काश की कोई मेरे दिल को संभाले तो
चाहतों सी कुछ सौगात नहीं होती है।

इश्क़ के और प्रियम ढेरों अफ़साने हैं,
खेल मुहब्बत में शह मात नहीं होती है।
©पंकज प्रियम

637. इल्ज़ाम

❆ ग़ज़ल
❆ काफ़िया (तुकान्त) - आम
❆ रदीफ़ (पदान्त) - बेरदीफ़

12 2   2 22    2 21

भले हो जाएं हम बदनाम,
लगा दो मुझपे इक इल्ज़ाम।

तुम्हारे दिल में रहता कौन,
बता दो सबको मेरा नाम।

तुम्हारे लब तो रहते मौन,
नज़र ही करते सारे काम।

तुम्हारे ख़्वाबों में हमराज़,
डूबा जो रहता सुबहो शाम।

प्रियम ही तेरे दिल का राज़,
दिखा दो मुहब्बत का पैगाम।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Wednesday, August 14, 2019

627. तिरंगा

तिरंगा
1222 1222 1222 1222
तिरंगा हाथ में ले काफ़िला जब जब गुजरता है।
फड़क उठती भुजा मेरी रगों में ज्वार भरता है।

कदम को चूमती धरती, तिरंगा झूमता अम्बर,
तिरंगा आसमां फहरे, जमी से प्यार करता है।

तिरंगा आन भारत की, तिरंगा जान भारत की,
तिरंगा में हाथ में लेकर, खुशी से यार मरता है।

सदा ऊँचा रहे झण्डा, यही अरमान है सबका,
तिरंगा देख कर दुश्मन,  सभी गद्दार डरता है।

तिरंगा हाथ में होता, बड़ी हिम्मत प्रियम देता,
मिले जो दर्द सरहद पे, यही तत्काल हरता है।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Sunday, July 28, 2019

616.हसीन लाज़वाब

ग़ज़ल
बहर-1212 1212
खिला हुआ गुलाब तुम,
हसीन लाज़वाब तुम।

खुमारियां बहुत अगर,
शराब बेहिसाब तुम।

नज़र मिली हुआ असर,
बहक रही शबाब तुम।

कटार मारती नज़र,
हसीन एक ख़्वाब तुम।

सवाल क्या करे प्रियम,
सवाल तुम जवाब तुम।

©पंकज प्रियम

Tuesday, July 23, 2019

610. दर्दे दिल

दर्द मुहब्बत
ग़ज़ल
कुछ राज मुहब्बत में छुपाने के लिए हैं,
कुछ राज अकेले में बताने के लिए हैं।

सब कुछ ये जुबाँ कहती कहाँ इश्क़ में
कुछ बात निगाहों से जताने के लिए है।

आवाज़ जमाने की कब सुनी है दिल ने,
अल्फ़ाज़ धड़कनों से सुनाने के लिए है।

ख़ामोश जुबाँ रख, क़त्ल नजरों से करते
क़ातिल वो निग़ाहों में बसाने के लिए है।

दर्द मुहब्बत का सह पाया कौन "प्रियम"
कुछ दर्द निग़ाहों से बहाने के लिए है।
©पंकज प्रियम

Monday, July 15, 2019

603. हिंदुस्तान

हिंदुस्तान

मन में गंगा कफ़न तिरंगा, एक यही अरमान है,
मेरी धड़कन हरक्षण धड़के, दिल में हिंदुस्तान है।

आँखों में पलते ख़्वाब बड़े, हौसला सागर के जैसा,
रखते आग हैं सूरज का और चंदा की मुस्कान है।

मन है विश्वास भरा और तन में जोश जवानी का,
वतन की ख़ातिर मरना जीना, वतन हमारी जान है।

हम सृजन के बीज धरा में, उगकर छूते अम्बर को,
मेहनत की हम रोटी खाते, दीन धरम ईमान है।

जाति-धर्म और मज़हब से, ना रिश्ता है नफ़रत से
दिल में रखता भारत प्रियम, सच्चा एक इंसान है।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Monday, July 1, 2019

591. अलविदा

अलविदा

अगर दिल तोड़ दूँ तेरा, तभी तुम अलविदा कहना,
मगर दिल तोड़ के मेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

तुम्हारे प्यार की ख़ातिर, भले सौ बार हो मरना,
नहीं बन पाऊँ जो तेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

किया खुद से भी वादा , किया तुझसे भी है वादा,
हमारा सात हो फेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

कदम हर साथ चलने का, किया अपना इरादा है
भले मुश्किल का हो घेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

प्रियम की साँस चलती है, तुम्हारे साँस लेने से,
भले हम छोड़ दें डेरा, नहीं तुम अलविदा कहना।

©पंकज प्रियम

Friday, June 28, 2019

585.आरजू

ग़ज़ल
काफ़िया-आये 
रदीफ़-रखा

आरजू
सपना सजाये रखा, अरमां दबाये रखा,
कैसे कहूँ मैं तुझसे क्या-2 छुपाये रखा।

चाहा तुझे मैं हरदम, अपनी हदों से बढ़कर
चाहत की रौशनी में, खुद को जगाये रखा।

जलता रहा अकेला, तुझमें मैं दूर रहकर,
रुसवाइयों के डर से, तुझको बचाये रखा।

मुझसे लिपट तू जाती, ख्वाबों में मेरे आके,
सपना कहीं ना टूटे,    पलकें गिराये रखा।

अब तो करीब आओ, अपना मुझे बनाओ
"प्रियम" की आरजू हो, कब से बताये रखा।
©पंकज प्रियम
28 जून 2019

Wednesday, May 8, 2019

580.कसूर क्या है

कसूर क्या है

नज़र नज़र का हुआ असर है, बता न मेरा कसूर क्या है,
पिला के नज़रों से जाम हमको, बता रहे हो सुरूर क्या है।

नज़र मिला के नज़र चुराना, बड़ी अदा से नज़र झुकाना,
इसी नज़र से हुआ मैं घायल, तुम्हीं बताओ हुजूर क्या है।

नज़र तुम्हारी बड़ी है क़ातिल, कहाँ जरूरत तुम्हें है खंज़र
इसी समंदर समायी दुनियां, हुआ इसी पर गुरूर क्या है।

सफ़र अभी तो शुरू हुआ है, अभी डगर पे ठहर न जाना,
डगर पे हमने कदम रखा है, अभी गिराना जरूर क्या है।

प्रियम को तेरी बहुत जरूरत, नहीं जताया मगर कभी भी,
अगर बुलाओ उसे कभी जो, सफर यहाँ आज दूर क्या है।

©पंकज प्रियम

Sunday, May 5, 2019

571. लाचार

नज़र आता है

हर अक्स यहाँ बेज़ार नज़र आता है,
हर शख्स यहां लाचार नज़र आता है।

जीने की आस लिए हर आदमी अब,
मौत का करता इंतजार नज़र आता है।

काम की तलाश में भटकता रोज यहाँ
हर युवा ही बेरोजगार नज़र आता है।

छाप अँगूठा जब कुर्सी पर बैठा तब,
पढ़ना लिखना बेकार नज़र आता है।

भूखे सोता गरीब, कर्ज़ में डूबा कृषक
हर बड़ा आदमी सरकार नज़र आता है।

गाँव शहर की हर गली में मासूमों संग,
यहाँ रोज होता बलात्कर नज़र आता है।

और क्या लिखोगे अब दास्ताँ 'प्रियम'
सबकुछ बिकता बाज़ार नज़र आता है।
©पंकज प्रियम

569. कहर

कहर

बदलता ये मौसम हरपहर देखिए,
सुबह धूप बरसता दोपहर देखिए।

गाँव में सुकून अब मिलता नहीं,
खुद में सिमटता ये शहर देखिए।

जल रही जमीं, दहकता आसमां
धरती पे सूरज का कहर देखिए।

सूखने लगे है यहाँ नदी और नाले
हवा को जलाती हुई लहर देखिए।

हुई नंगी सड़कें, कट गए पेड़-पौधे
मिले छाँव ऐसा कोई ठहर देखिए।

हवाओं को हमने सताया है इतना
सांसों में घुलता ये जहर देखिए।

गर्मी में तूफ़ां और बरसात सूखा,
धुंध में लिपटा हुआ सहर देखिए।

©पंकज प्रियम

558. हमसफ़र चाहिए

ग़ज़ल

122 122 122 12
हमसफ़र चाहिए

हमें और कुछ ना ख़बर चाहिए
हमें तो पता हमसफ़र चाहिए।

हमें छोड़कर जा बसे वो जहाँ,
वही तो हमें बस शहर चाहिए।

सदा जो सुहानी जगी भोर थी,
हमें तो वही फिर सहर चाहिए।

दरस को तरसती नज़र अब मेरी
नज़र को नज़र की नज़र चाहिए।

बहुत चल चुके हैं अकेले "प्रियम"
उसी हमसफ़र का सफ़र चाहिए।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

551. ज़िंदगी की तरह

ज़िन्दगी की तरह
212 212 212 212
प्यार करती रही, ज़िन्दगी की तरह,
बेवफ़ा हो गयी,  ज़िन्दगी की तरह।

साथ हमने दिया, हर घड़ी हर पहर,
छोड़कर वो गयी, ज़िन्दगी की तरह।

ख़्वाब पूरे किये,  तोड़ कर ख़्वाब को,
तोड़कर दिल गयी, ज़िन्दगी की तरह।

सांस बनकर सदा,  साथ चलते रहे,
धडकनें रोक दी, ज़िन्दगी की तरह।

ज़िन्दगी थी अधूरी, "प्रियम" के बिना
मौत देकर गयी,  ज़िन्दगी की तरह।

©पंकज प्रियम

Monday, April 29, 2019

546. मन उदास है

मन उदास है।

तू किसी और के जो अब पास है
मेरा मन इसलिए बहुत उदास है।

देख लेना झांक कर तुम अंदर
दिल मेरा भी तुम्हारे ही पास है।

तेरा दावा की नूर छीन लिया मैंने
मेरा भी चैन तुम्हारे आसपास है।

तू ही तो हो मेरी पहली मोहब्बत
तू ही तो मेरा पहला अहसास है।

तेरे लबों की हंसी मेरी थी खुशी
तेरे लिए अब कोई और खास है।

फूलों से महकते तेरे घर के रस्ते
वो पगडंडिया भी अब उदास है।

निगाहों में डूबा रहता था अक्सर
अश्कों से अब बुझ रही प्यास है।

सुबह की धूप भी लगती है कड़ी
रात में चाँद भी दिखता निराश है।

पथरा गयी है अब ये आँखे मेरी
सूरज के संग ढलती अब आस है

©पंकज प्रियम

Thursday, March 7, 2019

534.जिन्दगी


काफिया -अती
रदीफ़ -है.

ग़जल
जिंदगी कुछ धुंधली कुछ शाम-सी ढलती है
स्याह रातों में खुद, गुमनाम सी जलती है ।

खुद से ही फैसले कर सजा भी खुद दे लेते हैं
नाम की ये जहाँ, कभी बदनाम भी करती है ।

यूँ तो कभी मैं पीता नही ,पर लडखडाता हूँ
गम-ए-इश्क भी जब दर्द का जाम भरती है.

भीड़ में भी तनहा, रहने की कसम खा ली
अपना होकर भी वो अनजान सी बनती है.

भीड़ में खो गया है लगता हर अक्स प्रियम
रुसवाई में तन्हाई अब निदान सी लगती है ।

-पंकज भूषण पाठक "प्रियम"

Wednesday, February 20, 2019

528.वतन के नाम

1222 1222 1222 1222

वतन के नाम ये जीवन, मुझे भी आज करने दो
वतन पे जां लुटाकर के, दिलों में राज करने दो।

वतन के नाम ही जीना, वतन के नाम ही मरना,
वतन के साथ जीवन का,नया आगाज करने दो।

किया है पीठ पर हमला, पड़ोसी देश ने अक्सर
उसी पागल पड़ोसी का , मुझे ईलाज करने दो।

बहे हैं खून के आँसू, मिले जो ज़ख्म भारत को,
दबा है दर्द जो दिल में, उसे आवाज़ करने दो।

सहेंगे और हम कितने, जवानों की शहादत को
प्रियम के भाव जो उमड़े,उसे अल्फ़ाज़ करने दो।

©पंकज प्रियम

Wednesday, February 13, 2019

523. वक्त

वक्त

मुट्ठी से रजकण फिसल जाता है 
वक्त भी हर क्षण निकल जाता है.

नहीं करता इंतजार यह किसी का 
सूरज सा उगकर भी ढल जाता है.

चलता जो वक्त के साथ हर पल 
राह में गिरकर भी संभल जाता है.

किसी के हालात पे तू हंसना नही 
वक्त किसी का भी बदल जाता है.

नश्वर देह पर कैसा गुमान प्रियम
जो अपनों के हाथ जल जाता है.

-------पंकज प्रियम

Wednesday, February 6, 2019

517.ठिकाना है बहुत

ये रूप तेरा जो मस्ताना है बहुत
करता दिल को दीवाना है बहुत।

आया जो मौसम अब बसन्त का
प्यार का कुम्भ नहाना है बहुत।

मदहोश करती है तेरी ये शोखियाँ
और ये मौसम भी सुहाना है बहुत।

जरा और करीब आओ पास बैठो
तेरा दूर जाने का बहाना है बहुत।

और न दिखा तू जलवा हुस्न का
यहाँ प्रियम का ठिकाना है बहुत।

©पंकज प्रियम

Sunday, February 3, 2019

514.मुहब्बत की आजमाइश

मुहब्बत की आजमाइश
वो इस कदर मुझे आजमाने लगे
वक्त-बेवक्त हर वक्त बुलाने लगे।
मुहब्बत न हुई मानो रेस हो गयी
वक्त से भी तेज मुझे भगाने लगे।
दीदारे चाँद की ख्वाहिश क्या की
रातों में अक्सर मुझे जगाने लगे।
माना कि इश्क़ आग का है दरिया
मगर वो गैरों से मुझे जलाने लगे।
अश्कों से भी क्या इश्क़ हो गया
जो बेवजह खुद को रुलाने लगे।
दर्द से भी मुहब्बत जो कर लिया
ज़ख्मो को लफ्ज़ों में बहाने लगे।
इतनी जो इबादत कर दी प्रियम
वो खुद को ही खुदा बताने लगे।
©पंकज प्रियम

Friday, February 1, 2019

514.मुहब्बत की आजमाइश



 आजमाइश

इस कदर वो मुझे आजमाने लगे
याद बनकर दिलों में समाने लगे।

प्यार ना ये हुआ रेस ये हो गया
वक्त से तेज मुझको भगाने लगे।

चाँद दीदार की ख्वाहिशें जो रखी
रात में रोज मुझको जगाने लगे।

इश्क़ माना कि दरिया बड़ी आग है
गैर से प्यार कर वो जलाने लगे।

अश्क़ से भी मुझे इश्क़ जो हो गया
बेवजह रोज खुद को रुलाने लगे।

दर्द से भी मुहब्बत दिलों ने किया।
ज़ख्म को लफ़्ज़ में यूँ बहाने लगे।

प्यार में जो इबादत प्रियम ने किया
वो खुदी को खुदा अब बताने लगे।

©पंकज प्रियम
©पंकज प्रियम