Sunday, May 5, 2019

569. कहर

कहर

बदलता ये मौसम हरपहर देखिए,
सुबह धूप बरसता दोपहर देखिए।

गाँव में सुकून अब मिलता नहीं,
खुद में सिमटता ये शहर देखिए।

जल रही जमीं, दहकता आसमां
धरती पे सूरज का कहर देखिए।

सूखने लगे है यहाँ नदी और नाले
हवा को जलाती हुई लहर देखिए।

हुई नंगी सड़कें, कट गए पेड़-पौधे
मिले छाँव ऐसा कोई ठहर देखिए।

हवाओं को हमने सताया है इतना
सांसों में घुलता ये जहर देखिए।

गर्मी में तूफ़ां और बरसात सूखा,
धुंध में लिपटा हुआ सहर देखिए।

©पंकज प्रियम

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