कसूर क्या है
नज़र नज़र का हुआ असर है, बता न मेरा कसूर क्या है,
पिला के नज़रों से जाम हमको, बता रहे हो सुरूर क्या है।
नज़र मिला के नज़र चुराना, बड़ी अदा से नज़र झुकाना,
इसी नज़र से हुआ मैं घायल, तुम्हीं बताओ हुजूर क्या है।
नज़र तुम्हारी बड़ी है क़ातिल, कहाँ जरूरत तुम्हें है खंज़र
इसी समंदर समायी दुनियां, हुआ इसी पर गुरूर क्या है।
सफ़र अभी तो शुरू हुआ है, अभी डगर पे ठहर न जाना,
डगर पे हमने कदम रखा है, अभी गिराना जरूर क्या है।
प्रियम को तेरी बहुत जरूरत, नहीं जताया मगर कभी भी,
अगर बुलाओ उसे कभी जो, सफर यहाँ आज दूर क्या है।
©पंकज प्रियम
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