समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
ग़ज़ल बहर-1212 1212 खिला हुआ गुलाब तुम, हसीन लाज़वाब तुम।
खुमारियां बहुत अगर, शराब बेहिसाब तुम।
नज़र मिली हुआ असर, बहक रही शबाब तुम।
कटार मारती नज़र, हसीन एक ख़्वाब तुम।
सवाल क्या करे प्रियम, सवाल तुम जवाब तुम।
©पंकज प्रियम
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