ग़ज़ल
122 122 122 12
हमसफ़र चाहिए
हमें और कुछ ना ख़बर चाहिए
हमें तो पता हमसफ़र चाहिए।
हमें छोड़कर जा बसे वो जहाँ,
वही तो हमें बस शहर चाहिए।
सदा जो सुहानी जगी भोर थी,
हमें तो वही फिर सहर चाहिए।
दरस को तरसती नज़र अब मेरी
नज़र को नज़र की नज़र चाहिए।
बहुत चल चुके हैं अकेले "प्रियम"
उसी हमसफ़र का सफ़र चाहिए।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड
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