Friday, January 12, 2018

अदालत का झगड़ा

कैसा ये झगड़ा है?
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ऑफिस में टेबल का झगड़ा
कुर्सी पद का होता रगड़ा
           घर घर चूल्हे का आम लफड़ा है।
गांव डगर हर नगर होता
खेतों के बटवारे का झगड़ा है।
अब तो न्याय के मंदिर में
देखो  कैसा ये खास झगड़ा है
             अदालत का कैसा ये लफड़ा है।
इंसाफ का मंदिर जनता का भरोसा
झगड़ों का फैसला करती है अदालत
न्याय के दर में हुआ कैसा
केसों के बटवारे का लफड़ा है।
                अदालत का कैसा ये झगड़ा है।
पंच होता परमेश्वर यहां
न्यायमूर्ति ईश्वर जहां
उस इंसाफ के मन्दिर में
देखो कैसा हुआ ये रगड़ा है।
                  अदालत का कैसा ये झगड़ा है।
न्याय को जनता जाती अदालत
जज ही लेकर केस अपना
खटखटा रहे जनता की अदालत।
हे कानून की देवी
अब तो खोल लो
अपने आंखों की पट्टी
देख झुक गया कैसे
तेरे तराजू का एक पलड़ा है।
                 अदालत का कैसा ये झगड़ा है।
जनता किस दर पे जाये
किस मन्दिर इंसाफ पाये
तारीख पर तारीख तो
सह ले, पर इस सवाल पे
आज हर मन उखड़ा है
             अदालत का ये कैसा झगड़ा है।
न्याय के दर पे ही
हो अन्याय अगर
तो सवाल उठता
जरूर अंदर कोई लफड़ा है।
             अदालत का ये कैसा झगड़ा है।
शर्म से झुका है देश सारा
कैसा हुआ परिवेश हमारा
क्या नौबत थी ऐसी आनी
इतिहास की बनी कहानी
              क्या जज भी जज से लड़ा है?
              न्याय को खुद जन में खड़ा है।
              केस बटवारे का कैसा ये लफड़ा है
              अदालत का कैसा ये झगड़ा है?
                         
             ©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
                12.01.2018

1 comment:

RINKI RAUT said...

देश में आदरणीय जज भी लड़ रहे है