Monday, January 22, 2018

783. ऋतुराज बसंत

ऋतुराज बसंत

हुआ बसन्त का है जो आगमन
महक उठा है सारा वन उपवन।
खिले फूल जो मचल उठा है मन
संग मौसम बदला है नजारा,
हुई जवां कली खिल उठा है तन।
बागों ने ओढ़ी फूलों की चादर,
महकी धरा मस्त झूमा है गगन।
तरुण लताएं खुद में सिमट रही,
शरमाती कलियां यूँ लिपट रही।
फिजाओं ने छेड़ा जो मुक्तराग,
कोयल भी मधुर गीत गा रही।
आम्र तरुओं की बात निराली,
मंजरों के बोझ झुकी है डाली।
टपकता रस सुगन्ध फैला रहा,
मदमस्त हो मकरन्द बौरा रहा।
नव कलियों को छूने को आतुर,
बावला बन फिर-फिर रहा पवन।
हुआ बसन्त का है जो आगमन,
महक उठा है सारा वन उपवन।
                 © पंकज प्रियम

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