Wednesday, January 31, 2018

ग्रहण

जीवन का संदेश देता है ग्रहण
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वो चाँद है इसलिए तो लगता है ग्रहण
सूर्य के तपिश को भी छू लेता है ग्रहण।

चांद की चांदनी सूरज की श्वेत किरण
दोनो का ही तो मजा ले लेता है ग्रहण।

देवासुर मेल नही राहू का ये खेल नही
चांद-सूरज और धरती का ये है मिलन।

फिर होती चांदनी न घटता सूर्य किरण
चन्द घड़ी कुछ ही पलों का तो है ग्रहण।

खौफ नही बड़ा संदेश दे जाता है ग्रहण
सुख दुःख का अद्भुत संगम है ये जीवन।

चांद व सूरज में जब लग जाता है ग्रहण
हम क्या है बहुत अबोध होता है जीवन।

तभी तो कहता 'प्रियम" तुमसे ऐ जीवन
जी लो जीभरकर जैसे हो आखिरी क्षण

किरणों से हंसी बिखेरता चलता रह तू
उल्फ़त की राह में भी हरपल हर क्षण।
       © पंकज भूषण पाठक "प्रियम"



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