गरीब मर गया
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जिंदगी की दुआ मांगती भीड़ से,
मजारों में चादर बेशुमार भर गया
और मुफ़्त दुआएं रोज बाँटता वो,
बाहर ठंड में वो फ़कीर मर गया।
मन्दिर, मस्जिद,चर्च औ गुरुद्वारा,
इसमे ही बंट गया है ये जग सारा।
दूध पकवान से मन्दिर भर गया,
और भूख से एक गरीब मर गया।
सत्ता सरकार और सियासतें,
बस करती विकास की बातें।
मरने पर बांटती है वो खैरातें,
दो निवाले को वो गुज़र गया।
ठंड और भूख से मौत कभी,
कोई भी सरकार मानती नही।
बिन आधार-कार्ड के अब तो,
किसी को शासन जानती नही।
आधार नहीं तो अनाज नहीं,
कम्बल और आवास नहीं।
भात-भात कहते सन्तोषी,
का स्वर पल में बिखर गया।
कम्बल ओढ़ घी कोई पीता रहा,
बिन कम्बल के कोई जीता रहा।
टूट गयी सांस ठिठुरते चन्दो की,
और फिर गरीब ठंड से मर गया।
हवाई जहाज आसमां उड़ाने को,
उजाड़ा गरीबों के आशियाने को।
प्लास्टिक की झोपड़ी में मुआवजे,
की आस में एक पोचा गुजर गया।
मौत के बाद मुआवजे का तमाशा,
चन्द नोटों के नेताओं का दिलासा
लाश पर चन्द हजार बाबू धर गया
ठंड और भूख से जो था मर गया।
©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
1 comment:
प्रेम कि मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ ...सुंदर रचना.... आपकी लेखनी कि यही ख़ास बात है कि आप कि रचना बाँध लेती है.....
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