Friday, January 26, 2018

झंडा तिरंगा



आओ फिर देशभक्ति का गीत दोहराते है
राष्ट्रीय पावन पर्व का रस्मों रीत निभाते हैं।

स्वाधीन भारत के गणतंत्र पर फिर से
एक दिन के अवकाश का जश्न मनाते है।

सज संवर कर देखो नेता अफसर आते हैं
घोटालों की कालिख खादी  में छुपाते हैं।

भविष्य देश के भूखे सड़क सो जाते हैं।
भ्रस्टाचारी जेल में भी बटर नान खाते है ।

सरहद पे जवान गोली से नही भय खाते हैं
अपने देश के गद्दारों की गाली से घबराते हैं।

राजनीति पर चौपाल पे चर्चा खूब कराते है।
गन्दी है सियासत इसबात पे ठहाके लगाते है

पर इस कचरे को साफ करने से कतराते हैं।
घर आकर टीवी और बीबी से गप्पें लड़ाते हैं।

सच्चाई सिसकती कोने में झूठे राज चलाते है
भ्रस्टाचारी का डंडा , झंडा तिरंगा फहराते हैं।

तिरंगे को देना है सम्मान अगर
देश का रखना अभिमान अगर
आओ मिलकर फिर एक कसम हम खाते हैं।
देश से भय भूख और भ्रस्टाचार मिटाते है।

जंगे आज़ादी का गीत फिर एकबार दोहराते हैं।
आओ स्वाधीनता के गणतंत्र का जश्न मनाते है।

कट्टरता के जंजीरो से समाज को मुक्त कराते हैं
वन्देमातरम जय हिंद का नारा बुलंद  कर जाते है।


             ©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
                        25.1.18


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