इश्क़ है
उसमे डूब कर जाना ही इश्क है।
ये जरूरी तो नही की रोज बात हो
लबों पे नाम आ जाना भी इश्क है
ये जरूरी तो नही रोज मुलाकात हो
यूँ तन्हाई में गुजर जाना भी इश्क है।
शब्दों में यूं बह जाना भी तो इश्क है
तेरी शोहबत की भले न कोई रात हो
बन्द आंखों में बस जाना भी इश्क है।
छोटी छोटी बातों पे रोज रुठ कर तेरा
रात मुंह फेर सो जाना भी तो इश्क है।
फिर अलसायी सुबह बिस्तर पे मेरा
गर्म चाय ले के आना भी तो इश्क है।
आंखों से भले तेरा कोई इज़हार न हो
ख्वाबों में यूँ आजाना भी तो इश्क है।
दिल से भले तेरा मुझसे इकरार न हो
सांसों में धड़क जाना भी तो इश्क है।
चलो माना कि नही है मोहब्बत हमसे
मेरा हर पोस्ट छू जाना भी तो इश्क है।
चलो माना कि कोई रिश्ता नही हमसे
ख्वाहिश पे DP बदल जाना भी इश्क है।
चुटकी भर लाली से रिश्ता जिंदगी का
ये माथे की बिंदी सा चुटकी भर इश्क है।
राधा के नाम हर शाम यमुना किनारे
माधव का यूँ मुरली बजाना भी इश्क है।
श्याम श्याम राग जपते रानी मीरा का
प्रेम में जहर पी जाना भी तो इश्क है।
राम राम जपते वन में बूढ़ी शबरी का
जूठे बेर भगवन का खाना भी इश्क है।
खामोशी लबों पे तो आंखों में नमी है
दिल धड़कता इश्क है इश्क है इश्क है।
©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
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