उठा लो गांडीव हे पार्थ
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सच है युद्ध कोई पर्याय नही
पर बिन इसके अब उपाय नही
जब संकट में पड़ा हो देश
कहां शोभती दया शांति वेश
हो रहा हरपल मानव का संहार
संयम साहस को कर रहा ललकार
है पाप नही,पूण्य है ये
आतंक के खिलाफ उठाना हथियार
देख अपनो को खड़ा कुरुक्षेत्र में
अर्जुन ने जब युद्ध से किया इनकार
कृष्ण ने तब भरी हुँकार
उठा लो गांडीव हे पार्थ!
कर डालो दुष्टों का संहार
परिस्थितियां फिर है वही
हो रहे धमाके,बंदूके बरस रही
दहशत में जिन्दगी बसर रही
उजड़ गयी मांगे कितनी
गोदें कितनी सूनी हो रही
शांति की राह में मिला है धोखा
इन पथरायी आंखों मे
आंसू नही खून का है कतरा सूखा
बूढ़ी नजरों को है बेटे का इंतजार
खड़ी है बहनें लिए राखी का प्यार
इन अबलाओं के आँचल है खाली
मेंहदी से पहले उजड़ी सुहाग की लाली
आतंकी,उग्रवादी को नही क्षमा अधिकार
समय कह रहा फिर बार बार
अमन चैन की खातिर
उठा लो गांडीव हे पार्थ।
कर डालो दुष्टों का संहार।
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