Friday, January 12, 2018

प्रेमपुष्प

प्रेमपुष्प
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मैं ये नही कहता कभी
तुम ये करो ,ये ना करो
मैं शामिल रहूँ जहां
                तुम सारे वो काम करो।
तेरी सांसो में महकता रहूँ
दिल मे हरपल धड़कता रहूँ
टूट न जाये जीवन की डोर
             तुम ऐसा न कभी तान भरो।
तेरे नाम का एक हिस्सा हूँ मैं
तेरे नाम का एक किस्सा हूँ मैं
छलक गिर जाये न जमीं पे
                   ना तुम इतना जाम भरो।
मेरी ख्वाहिश यही तमन्ना मेरी
दर्पण में तूझे बस मैं ही दिखूं
सपनों में बस मैं शामिल रहूँ
               मेरा इंतजार सुबहो शाम करो।
सुबह की अलसायी नींद में तुम हो
सर्द गुलाबी दुपहरी धूप में तुम हो
गोधूलि खलती है बड़ी,शाम में भी
                     मिलने का इंतजाम करो।
कर दिया है खुद को नाम तेरे
हरपल हर क्षण हम साथ तेरे
मैं तो तेरी हंसी का तलबगार हूँ
                  नाम करो या बदनाम करो।
मेरी शोहरत मेरे नाम
सब कुछ  हैं तेरे नाम
 मेरी वफ़ा को यूँ न कभी
                  तुम सरेआम नीलाम करो।
सारे जहां में  बदनाम
हो जाये कोई गम नही
नजरो से खुद गिर जाए
                 तुम न कोई ऐसा काम करो।
तेरी हर बात तेरे जज़्बात
हर काम मेरी परछाई हो
फक्र से नाम ले अपना
               तुम सदा ऐसा काम करो।
पलभर की जुदाई मंजूर है
गमों की तन्हाई भी मंजूर है
कसक उठ जाती है दिल मे
              तुम गैरों का न गुणगान करो।
तुझसे और क्या कहूँ मैं
ख्वाबों को जान जाता हूँ मैं
चाँद सितारे तो नही पास मेरे
                 प्रेम पुष्पों का ही श्रृंगार करो।
चाँद तारे तोड़ लाने की बातें
करते वही जिनके हैं झूठे वादे
सच्ची मोहब्बत के सिवा
नही कुछ पास मेरे, हो सके तो
              तुम मेरे इश्क से ही मांग भरो।
              मेरे प्रेमपुष्पों का ही श्रृंगार करो।

                                    ©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
                                       1 दिसम्बर 2002

1 comment:

Sweta sinha said...

पंकज जी बहुत सुंदर रचनाएँ है आपकी..👌