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Saturday, November 2, 2019

709. छठ महापर्व

छठ पर्व

किया खुद से स्वयं हठ है, कठिन तप साधना छठ है,
महज़ पूजा फ़क़त अर्पण, नहीं बस कामना छठ है।
नदी तालाब सूरज और मिट्टी बांस फल-जल-बल-
सभी को स्वच्छ करने का बड़ी आराधना छठ है।।

रवि आदित्य सविता सूर्य, दिनकर भानु प्रभाकर,
मरीचि हंस अंशुमाली, जगत रौशन करे भास्कर।
सहस्रांशु त्रिलोचन,....हरिदश्वम विभावसवे-
त्रिमूर्ति द्वादशात्मकम, करे कल्याण दिवाकर।।

महापर्व लोकआस्था का, छठ महिमा अपरम्पार,
अस्ताचल-उदयगामी, दोनों वक्त जयजयकार।
कठिन तप निर्जला छठ ये, करे जो पर्व ये मन से-
मिटे सब कष्ट जीवन का, होता उसका बेड़ापार।।

कहे भूगोल ये हरदम, जो उगता है वो डूबेगा,
हमारी आस्था कहती, जो डूबता है वो उगेगा।
इसी विश्वास के बल पर यहाँ होती सदा पूजा-
हमेशा सोच पूरब की, जहाँ से सूर्य निकलेगा।।
©पंकज प्रियम

छठ कोई पर्व या सिर्फ त्यौहार नहीं होता,
केवल रीत रिवाज या संस्कार नहीं होता।

छठ पर्व है अपनों को अपनों से मिलाने का,
विदेशों में बसे बच्चों को पास में बुलाने का।

बच्चों को नदी सूर्य और तालाब दिखाने का,
जातिगत भेदभाव और पाखण्ड मिटाने का।

बांस की सिमट रही सुप-दौरा को जगाने का,
घर नदी गली तालाब से गंदगी को हटाने का।

बेड-टी कल्चर से निकल कर प्रातः उठाने का,
उगते सूरज को ही सलाम की सोच मिटाने का।

"उदित-अस्त" दोनों को ही सम्मान दिलाने का,
छठ महापर्व है प्रकृति से खुद को मिलाने का।

सरिता में संस्कारों का कमल फूल खिलाने का।
कठोर तप साधना से पूरे तनमन को जगाने का

छठ पर्व सिर्फ कोई व्रत या विचार नहीं होता,
छठ पर्व महज कोई एक त्यौहार नहीं होता।

©पंकज प्रियम

Wednesday, October 16, 2019

689.बेटी

बेटी
मुझको तो स्कूल जाना है,
माँ का भी हाथ बंटाना है।
छोटी कोमल हाथों से-
चूल्हा-चौका सजाना है।।

क्या करूँ मेरी मजबूरी है,
घर का भी काम जरूरी है।
कुछ बनकर तो दिखाना है
माँ का भी हाथ बंटाना है।।

भैया तो चल जाता स्कूल,
बेटी होना क्या मेरी भूल?
घर की लक्ष्मी बन जाना है,
माँ का भी हाथ बंटाना है।।

खो रहा मासूम सा बचपन,
जिम्मेदारी जैसे हो पचपन।
मुझको तो हर दर्द पचाना है,
माँ का जो हाथ बंटाना है।।

©पंकज प्रियम

688.दीवाली

स्वच्छता अभियान में हो रही साफ सफाई।
थोड़ी पर्यावरण की भी चिंता कर लो भाई।

कुछ ही दिनों में आनेवाली है  दिवाली
पटाखों से फैलेगी चहुँओर धुवाँ काली।

धूम धड़ाको से मचेगा हर तरफ शोर ।
फैलेगा ध्वनि-वायु प्रदूषण हर ओर।

क्या नही रखना है पर्यावरण का ध्यान
तो फिर आज ही मन में  लो यह ठान।

पटाखे को करो तुम तो अब बाय बाय।
चायनीज लाइट को भी कहो गुडबाय।

घर में मिटटी के ही तुम दीप जलाओ।
गरीबों के घर में अब चूल्हा जलाओ।

घर के बने पुए और पकवान खाओ।
मिलावटी खोवे से खुद को बचाओ।
©पंकज प्रियम


Wednesday, October 9, 2019

684. माँ शारदे

वर दे

वर दे! माँ भारती तू वर दे,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

अहम-द्वेष तिमिर मन हर,
स्वच्छ मन स्वस्थ तन कर।
शील स्नेह सम्मान भर दे,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

बाल अबोध सुलभ सा मन,
मूढ़-जड़ अबूझ सरल मन।
अज्ञानता को मन से हर ले,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

अनजान अनगढ़ अनल मन,
नव संचार विचार नव मन।
सत्य असत्य का ज्ञान भर दे।
वर दे माँ शारदे तू वर दे।

तनमन सब तुझको ही अर्पण,
जीवन को करता हूँ समर्पण।
हरक्षण मेरा नवविहान कर दे।
वर दे! माँ भारती तू वर दे।

वीणापाणि पुस्तक धारिणी,
बुद्धि विवेक विद्या दायिनी।
मन में ज्ञान का संचार कर दे,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

धरती के तू हर कणकण में,
सत्य साधना के आँगन में।
ज्ञान दीप प्रकाश तू भर दे,
वर दे! माँ शारदे तू वर दे।

   © पंकज भूषण पाठक"प्रियम्

Tuesday, October 8, 2019

683. मैं ने मारा

मैं
राम लौटे जब अयोध्या,
पूछा उनसे कौसल्या ने।
दुष्ट दुराचारी रावण को,
मार दिया लल्ला तुमने।

धीर-गम्भीर बोले राम,
नहीं उसको मारा मैंने।
लंकापति रावण को तो,
खुद उसको मारा "मैं" ने।

रावण को था अभिमान,
तीन लोक में शक्तिमान।
मैं को खुद पाला उसने,
खुद उसको मारा मैंने।

मैं ही तो सबका दुश्मन,
महिषासुर हो या रावण।
मैं को जिया है जिसने,
खुद उसको मारा मैं ने।

मैं में ख़त्म हुआ जीवन,
बाली, कंस या दुर्योधन।
मैं को ही अपनाया इसने
खुद उसको मारा मैं ने।

©पंकज प्रियम

Thursday, October 3, 2019

675. कलम कवि की


कवि की कलम

जब आग दिलों में है जलती,
तब कलम कवि की है चलती।

हर रोज़ निशा भी सँग जगती,
हर बात की साक्षी वह बनती।
जब हृदय में पीर कोई पलती
तब कलम कवि की है चलती। 1।

जब सारा जग है सो जाता,
जब स्याह अँधेरा हो जाता।
जब रात घनेरी कुछ कहती,
तब कलम कवि की है चलती।2।

घड़ी भी टिक-टिक ये करती,
खुद से खुद वह बातें करती।
जब शाम सिन्दूरी बन ढलती,
तब कलम कवि की है चलती।3।

जब किरण सबेरे बिखराती,
सतरंगी छटाएँ निखराती।
जब खुशबू चमन में है घुलती,
तब कलम कवि की है चलती।4।

जब प्यार किसी से हो जाता,
ख़्वाबों में दिल ये खो जाता।
जब साँसे सरगम से सजती,
तब कलम कवि की है चलती।5।

जब साथ किसी का है छूटा,
दिल प्यार में दर्पण सा टूटा।
जब दर्द से नयना है बहती,
तब कलम कवि की है चलती।6

जिस माँ ने गोद में पाला था,
हाँ बाबा ने जीवन ढाला था।
जब तन्हाई उनको है खलती,
तब कलम कवि की है चलती।7।

जब भूख से कोई यहाँ मरता,
जब भीड़ से कोई यहाँ डरता।
जब ज्वाला मन में है जलती,
तब कलम कवि की है चलती।8।

जब राह कोई भी भटकता है,
फाँसी पे किसान लटकता है।
जब सज़ा बिना कोई ग़लती,
तब कलम कवि की है चलती।9।

जब कानून ही अंधा हो जाता,
भ्रष्टाचार ही धँधा हो जाता।
जब पाप की गंगा है बहती,
तब कलम कवि की है चलती।10।

जब धर्म-अधर्म का युद्ध बड़ा,
असत्य हो सत्य विरुद्ध खड़ा।
जब भीष्म की चुप्पी है सधती,
तब कलम कवि की है चलती।11।

जब कलम पे पहरा लगता है,
शासक भी बहरा लगता है।
जब रश्मि रवि की है थमती,
तब कलम कवि की है चलती।12।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Wednesday, October 2, 2019

674. प्रलय

प्रलय

कहीं पे सूखा, कहीं पे बाढ़
सज़ा ये कुदरत से छेड़छाड़।

ये प्रलयंकारी बाढ़ भयंकर,
ताण्डव मानो करते शंकर।
सुनो काल की तुम दहाड़,
कहीं पे सूखा कहीं पे बाढ़।

जिसके हिस्से जितना होगा,
सजा उसे तो भुगतना होगा।
काट के जंगल दिया उजाड़,
कहीं पे सूखा, कहीं पे बाढ़।

नहीं किसी को माफ़ करेगा,
कुदरत तो इन्साफ करेगा।
तोड़ के पत्थर खोदा पहाड़,
कहीं पे सूखा ,कहीं पे बाढ़।

बरसात में सूखा पड़ने लगा,
गर्मी में बादल झड़ने लगा।
सब संतुलन दिया बिगाड़,
कहीं पे सूखा, कही पे बाढ़।

जलप्लावित हैं गाँव-शहर,
डूबता घर हर ठाँव डहर।
प्रलय से कांप रहा है हाड़,
कहीं पे सूखा ,कहीं पे बाढ़।

ग्लोबल वार्मिंग चर्चा खूब,
प्लानिंग में बस खर्चा खूब।
लूट ली धरती इसके आड़,
कहीं पे सूखा, कहीं पे बाढ़।

कूड़ा-कचरा नदी में डाल,
सोख लिया सब रेत निकाल।
प्लास्टिक धरती का कबाड़,
कहीं पे सूखा ,कहीं पे बाढ़।

प्लास्टिक कचरा मिटाओगे,
धरती को स्वच्छ बनाओगे।
तो बीमारी क्या लेगी उखाड़,
न फिर सूखा, न फिर बाढ़।

©पंकज प्रियम
02/10/2019

Monday, September 30, 2019

673. काश

काश!

ऐ काश!  कभी ऐसा होता,
मेरे ख़्वाबों के जैसा होता।

धरती पर चाँद उतर जाता,
अम्बर से ख़्वाब सँवर जाता।
जीवन ये सोना खरा होता,
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

फूलों से खिला चेहरा होता,
हर दिल में प्यार भरा होता।
न आदमी कोई डरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

न जात धर्म का पाश कोई,
न ऊंच-नीच अहसास कोई
न मज़हब का पहरा होता,
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

बस प्यार मुहब्बत की बातें,
सपनों से सजी होती रातें।
हर दिन भी सुनहरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

नफऱत न यहाँ कोई करता,
भूखा न यहाँ कोई मरता।
भ्रष्टाचार नहीं गहरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

फूलों सा महकता हो जीवन,
खुशियों से भरा हो आँगन।
यह वक्त यूँ ही ठहरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।

©पंकज प्रियम

Friday, September 27, 2019

667. भारत माँ के लाल सभी

भारत माता की जय

नहीं फादर ऑफ इंडिया मोदी,
नहीं फादर ऑफ नेशन गाँधी।

नहीं उचित लफ्ज़ राष्ट्रपिता,
नहीं उचित शब्द ये राष्ट्रपति।

राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष कहलाते,
राष्ट्रपिता राष्ट्रसपूत बन जाते।

भारत तो बस माता है सबकी,
पावन धरती के हैं लाल सभी।

जहाँ राम-कृष्ण अवतार हुआ,
महाबीर-बुद्ध को ज्ञान मिला।

भरत नाम से भारत का नाम,
धरती पुत्र खुद कहलाये राम।

अखण्ड भारत का स्वप्न सजा,
चाणक्य ने चन्द्र को ताज दिया।

सम्राट अशोक बना महान यहाँ,
कहलाया न भारत का बाप यहाँ।
©पंकज प्रियम

नोट:- ये नितांत मेरी निजी भावना है। किसी के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने की कोई मंशा नहीं है। महात्मा गाँधी को मैं हृदय से सम्मान करता हूँ। लोगों के अपने अलग विचार हो सकतें है।

Sunday, September 22, 2019

660.सुजल गाँव

सुजल गाँव

अभी समझ लो इसका मोल,
पानी कितना है अनमोल।
जन-जंगल जीवन-सृजन,
का है यह अमृत सा घोल।
हाँ कह दो सारी दुनिया को,
बजा-बजा के अब तो ढोल।

जल घिरी पर प्यासी धरती,
जल के बिना रहती परती।
अगर नहीं रिचार्ज हुई तो,
पल-पल धरती खुद मरती।
जल ही रचाये जग सारा-
बिन पानी कब दुनिया गोल।

केवल वर्षा जल का ठिकाना,
बचा के उसको सारा रखना।
समय-समय जल जाँच करा-
तू स्वच्छ शुद्ध ही जल पीना।
एक-एक बूँद को तरसोगे जो
अगर न समझे जल का मोल।

कुआँ- चुवां, नदी-तालाब,
कभी न करना इन्हें खराब।
गाँव का पानी रखना गाँव-
रखना एक-एक बूँद हिसाब।
अगर अभी जो तुम न चेते,
केपटाउन सा होगा होल।

हैंडपंप या हो जल की मीनार,
सब पर रखना तुम अधिकार।
इनकी मरम्मत तुमको करना-
गाँव के खुद हो तुम सरकार।
शुद्ध, सुरक्षित जल देने को,
'प्रियम' सुजल का नारा बोल।
©पंकज प्रियम

659. स्वच्छ गाँव

स्वच्छ गाँव
हर कोई, हर रोज, हमेशा
आओ मिलकर हम सब,
प्रयास करें कुछ अब ऐसा।
शौचालय का करें प्रयोग-
हर कोई, हर रोज हमेशा।

तड़प उठता है दिल ये मेरा,
हुआ देश का हाल है कैसा?
खुले खेत में क्यूँ जाते सब,
जानवरों का हो चाल जैसा।
शौचालय का करें उपयोग-
हर कोई, हर रोज, हमेशा।

नहीं खुले में कोई जाएं,
सबको मिलकर समझाएं।
नहीं परिश्रम नहीं कठिन,
नहीं लगता है इसमें पैसा।
शौचालय में ही जाएं-
हर कोई हर रोज हमेशा।

रहना है जो तुम्हें निरोग,
शौचालय का करो प्रयोग।
स्वच्छ तन और स्वच्छ मन -
है मंदिर और धन के जैसा।
शौचालय का करें उपयोग-
हर कोई, हर रोज, हमेशा।

शिशु मल भी होता है गन्दा,
खुला फेंकने का छोड़ो धंधा।
उससे बढ़ता खूब है खतरा
शौच खुले में करने के जैसा।
सुरक्षित निपटारा हो प्रयोग
हर कोई हर रोज हमेशा।

भोजन से पहले शौच के बाद
हाथ है धोना तुम रखना याद।
हरेक बीमारी से बच जाओगे,
हररोज करोगे जब तुम ऐसा।
साबुन का ही सब करें प्रयोग
हर कोई, हर रोज, हमेशा।

चार दिनों का दर्द समझना,
मुश्किल में औरत का रहना।
न रक्त अशुद्ध न वो अपवित्र
मासिक धर्म एक चक्र के जैसा।
सुरक्षित पैड का करें उपयोग,
हर कोई हर रोज हमेशा।

नहीं खुले में कचरा फेंको,
गंदे पानी को यूँ न छोड़ो।
बहुत खतरा इससे भी होता
खुद ही जहर पीने के जैसा।
सोख्ता गड्ढा का करे उपयोग
हर कोई हर रोज हमेशा।

प्लास्टिक रिश्ता छोड़ो तुम,
स्वास्थ्य से नाता जोड़ो तुम।
धरती-जंगल-पानी-जीवन-
प्लास्टिक खतरा कैंसर जैसा।
कपड़े का थैला करें प्रयोग-
हर कोई, हर  रोज हमेशा।
©पंकज प्रियम

Monday, August 12, 2019

626.राम के वंशज

अगर राम नहीं तो फिर रामनवमी, दशहरा और दीवाली की छुट्टियां क्यूँ लेते हो साहेब?

राम का वंशज

सुनो सुनो, ऐ जज साहेब, करो न तुम ये बवाल यहाँ,
प्रभु राम के वंशज पर , उठा न तुम तो सवाल यहाँ।
राम की कण-कण ये धरती, राम नाम मिलती मुक्ति-
राम से ही अस्तित्व सभी का, रखना तुम ख़्याल यहाँ।

कोर्ट का चक्कर जब लगवाते, होता कब बवाल यहाँ,
तारीखों के घनचक्कर में, तुम रखते कब ख्याल यहाँ।
आतंकी की ख़ातिर कोर्ट को, आधी रात खुलवाते हो-
आस्था की जब बात है आती, करते क्यूँ सवाल यहाँ।

कण-कण राम का है वंशज, जन-मन में स्थान यहाँ,
राम कृपा से पावन धरती, राम वर्ण आसमान यहाँ।
सरयू की धारा भी कहती,   राम लला की वो कीर्ति-
अयोध्या के जनमानस पे, राम का ही गुणगान यहाँ।।

गंगा की अविरल धारा वो, लेती राम का नाम यहाँ,
भागीरथ की धरती पर, सबको राम से काम यहाँ।
राम नाम को जपकर ही, डाकू भी बाल्मीकि बना-
भरत नाम से भारत अपना, रघुकुल के राम यहाँ।।

सागर में दिखता है सेतु, किया था लंका पार यहाँ
प्रभुराम के रजकण से, हुआ अहल्या उद्धार यहाँ।
राम नाम तुलसी माला, गाँधी-कबीरा मुक्ति मिली-
राम नाम सत्य है कहकर, अंतिम का संस्कार यहाँ।।

रामजन्म की पावन भूमि, करती है फ़रियाद यहाँ,
यहीं राम ने खेला बचपन, आती है फिर याद यहाँ।
दुष्ट बाबर ने हमला कर, बनाया उसपे था मस्जिद-
बाबर की छाती पे चढ़ के, करो धाम आबाद यहाँ।।
©पंकज प्रियम
12 अगस्त 2019

Thursday, August 1, 2019

618. संहार करेगी

संहार करेगी

कुचल डालो सर उसका,  जिसने भी दुष्कर्म किया,
मसल डालो धड़ उसका,जिसने भी यह कर्म किया।

नहीं क्षमा ना दो संरक्षण, ना मज़हब का दो आरक्षण,
हर दुष्कर्मी को दो फाँसी, जो करते जिस्मों का भक्षण।

काट डालो उन पँजों को,जिसने अस्मत को तार किया,
मानव तन में छुपे भेड़िये, जिसने जीवन दुश्वार किया।

बालिग़ हो या नाबालिक, सबको दण्डित करना होगा,
जिसने भी ये पाप किया, उसको खण्डित करना होगा।

खोलो आँखों से अब पट्टी, कबतक मौन रहोगी देवी,
न्याय करो अब नजरों से, कबतक गौण रहोगी देवी।

इंसाफ की ऊंची कुर्सी भी, क्यूँ न देती अब न्याय यहाँ,
छूट जाता अपराधी हरदम, क्यूँ होता है अन्याय यहाँ।

बेटी पढ़ाओ बेटी बढ़ाओ का महज नारा न होने देना।
चमक चाँदनी रातो में भी, तुम ध्रुव तारा न खोने देना।

हर बेटी का अभिमान बचे, हर बेटी का सम्मान बचे,
जननी भाग्य विधाता सी , हर बेटी का अरमान बचे।

नहीं मिलेगा न्याय अगर तो हर बेटी तलवार बनेगी,
बन चामुण्डा बन काली, दुष्कर्मी का संहार करेगी।।

©पंकज प्रियम

Tuesday, July 30, 2019

617.शिकायत

शिकायत
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
अंतर होता है जिनकी
कथनी और करनी में।
देश में छुपे उन गद्दारों से
जो खाते हैं भारत की
रहते हैं भारत में पर
बात करते पाकिस्तान की।
करते मदद आतंकी को।
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
देश के उन बुद्धिमानों से
छद्मवेश सेक्युलर वालों से
जिनका विरोध होता सेलेक्टिव
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
तुष्टीकरण करने वालों से
वोटबैंक सियासत करने वालों से
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
मानव वेश में छुपे आदमखोरों से
नोंचते, खरोचते जो मासूमों को,
सौदा करते जिस्मों का
बिक जाते जो चंद सिक्कों में
शिकायत है मुझे उनसे
उन दरिंदे माँ और बापों से
जो बेटे की चाहत में कत्ल करते
कोख में अजन्मी औलादों को।
शिकायत है उन औलादों से
जो छोड़ देते हैं तन्हा
अपने बूढ़े माँ-बाप को।
शिकायत है इस सिस्टम से
सड़ी लचर व्यवस्था से
शिकायत है उस न्यायालय से
गरीबों को देती है सिर्फ तारीख़
और खोल देती दरवाजा
आतंकवादी के लिए आधी रातों को।
और शिकायत करूँ मैं कितनी
तारों से भी संख्या ज्यादा,
गहरी सागर के जितनी।
छोड़ो शिकवा और शिकायत
करो बस दिल से मुहब्बत
मिट जाएगी सारी नफ़रत।

©पंकज प्रियम

Tuesday, July 23, 2019

609.,सूखा सावन

सूखा सावन

सावन भी है सूखा साजन, जैसे गुजरा आषाढ़।
खेतों में है पपड़ी सूखी, जैसे पसरा सूखाड़।

कहीं-कहीं में सूखी नदिया, कहीं पे आया बाढ़।
सूखे में कोई रोता देखो, कोई डूबा रोये दहाड़।

आसमान से शोले बरसे, धरती आग उगलती है,
बरखा के इस मौसम में भी, धरती भाँप उगलती है।

सावन में हरियाली कैसे, वसुधा बूँद तरसती है,
सूखे खेतों को देख-देख, आँखे कृषक बरसती है।

हरी चूड़ियाँ कैसे खनके, रूठा बैठा साजन है,
मोर-पपीहा कैसे नाचे, सूखा-सूखा सावन है।

ऐ बादल तू कहाँ छुपा, किस देश में जाके बैठा है,
हाहाकार मचा है जग में, तू क्यूँ कर ऐसे ऐंठा है।

ऐ बरखा तू क्यूँ रूठी है, आके जल बरसाओ ना,
सावन की हरियाली दे दो, ऐसे दिल तरसाओ ना।

खेतों में अब पानी भर दो, बूँद-बूँद लहराओ ना,
सावन में जो साजन झूमे, ऐसी घटा गहराओ ना।

दूँगी तुझको लाख दुवाएँ, मेरे आँगन बरसो ना,
मिलेगा तुझको तेरा साजन,ऐसे तू भी तरसो ना।

©पंकज प्रियम
23 जुलाई 2019

Sunday, July 21, 2019

608.,स्वर्ण परी हिमा

स्वर्ण परी
अरे देखो जरा साक्षी, किया जो काम हिमा ने,
बढ़ाया मान भारत का, पिता का नाम हिमा ने।
महज उन्नीस वर्षो में, लिया है पाँच गोल्ड मैडल-
गरीबी है नहीं अड़चन, दिया पैगाम हिमा ने।

मुहब्बत हो अगर दिल में, नहीं अंजाम है मुश्किल,
अगर हो हौसला मन में, नहीं कुछ काम है मुश्किल।
करो जो प्रेम तुम खुद से, सफलता चूम ही लेती-
गँवाना नाम है आसान, कमाना नाम है मुश्किल।।


असम की ढिंग में जन्मी, कहाँ कोई नाम था उसका,
गरीबी में कटा जीवन, बड़ा गुमनाम था उसका।
मगर फिर हौसला भरकर, भरी उड़ान जो उसने-
भरी झोली अभी कुंदन, किया जो काम था उसका।।

पिता गर्वित हुए उसके, बढ़ाया मान माता का,
नहीं बहके कदम उसके, रखा स्वाभिमान माता का।
किया जो प्यार हिमा ने, हुई हर्षित जहाँ सारी-
उठाया नाम बेटी का, बढ़ा अभिमान माता का।।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड

Saturday, July 13, 2019

602.प्यार कहलाता

करे नीलाम जो इज्ज़त, नहीं व्यवहार वो अच्छा,
तमाशा जो बने चाहत,  नहीं है प्यार वो अच्छा।
बहे माँ-बाप के आँसू, अगर औलाद के कारण-
नहीं औलाद वो अच्छी, नहीं संस्कार वो अच्छा।।

नुमाईश हो अगर दिल की, नहीं वो प्यार कहलाता
करे माँ- बाप को रुसवा, नहीं अधिकार कहलाता।
मुहब्बत नाम है संयम, मुहब्बत त्याग है जीवन-
दिलों को जोड़ देता जो, वही तो प्यार कहलाता।।

करो तुम प्यार जिससे भी, तुम्हें अधिकार है साक्षी,
उछालो ना मुहब्बत तुम,  नहीं यह प्यार है साक्षी।
तुम्हें जन्मा तुम्हें पाला, पिता को खूब दी इज्ज़त-
सरे बाज़ार किया नंगा, अरे धिक्कार है साक्षी।।

सुनो ऐ अंजना कश्यप, करो तुम काम ना ऐसा,
किसी की आँख के आँसू, करो नीलाम ना ऐसा।
नहीं अख़बार ये कहता, नहीं टीवी कभी कहती-
ख़बर की रेस में रिश्ता, करो बदनाम ना ऐसा।

©पंकज प्रियम

Tuesday, July 9, 2019

601.गुजरने से पहले

वक्त गुजरने से पहले

थाम लेना स्वयं को
वक्त गुजरने से पहले
नहीं वक्त रुकता
कभी ना है थमता
ठहरता नहीं है ये
किसी के लिए।
कर्म अच्छे तू करना
साँस थमने से पहले।
सदा साँस चलती नहीं
कभी जिन्दगी के लिए।
ये दौलत ये शोहरत
ये जवानी ये सूरत
नहीं खत्म होगी कभी
ये जरूरत किसी के लिए।
निभाना तू रिश्ते नाते तू सारे
दिलों के डोर से जलने से पहले
सभी संग होंगे अंतिम सफ़र में
मगर तुझको जाना अकेले डगर में
साथ होंगे तुम्हारे, किये कर्म सारे
अच्छे करम से लगोगे किनारे
नहीं संग जाएगा कुछ भी तुम्हारे
रहेगा वही नाम, कमाया जो प्यारे।
करो कुछ तुम ऐसा गुजरने से पहले
सफ़र आखिरी में बहे नीर तेरे लिए।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखण्ड

Monday, July 8, 2019

599.मुहब्बत की तिज़ारत

दौलत और मुहब्ब्त

किसी का दिल नहीं तौलो, कभी धन और दौलत में,
नहीं औकात सिक्कों में.....खरीदे दिल तिजारत में।
नहीं बाज़ार में मिलता, ...नहीं दिल खेत में उगता--
समर्पण बीज जो बोता,.....वही पाता मुहब्बत में।।

तराजू में नहीं तौलो,....किसी मासूम से दिल को,
बड़े निश्छल बड़े कोमल, बड़े माशूक़ से दिल को।
जरा सी चोट क्या लगती, बिखरता काँच के जैसा-
नहीं तोड़ो मुहब्बत में, कभी नाज़ुक से दिल को।।

कभी परखो अगर दिल को, ये दौलत हार जाती है
मुहब्बत जीत जाती है...ये नफ़रत हार जाती है।
दिलों के खेल में अक्सर,  सभी दिल हार जाते हैं-
अगर जो जीतना हो दिल, मुहब्बत हार जाती है।।

नहीं दौलत नहीं शोहरत, न नफ़रत काम आएगी,
सभी जब साथ छोड़ेंगे, ..ये हसरत काम आएगी।
भरा जो प्रेम भावों से...वही दिल जीत पाता है-
बसा लो प्यार तुम दिल में, मुहब्बत काम आएगी।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड





Tuesday, June 11, 2019

582. खोलो त्रिनेत्र

खोलो त्रिनेत्र

हे शंकर! खोलो तो नेत्र
अब खोलो अपना त्रिनेत्र।

बहुत बढ़ गया पाप यहाँ
हरपल बढ़ा संताप यहाँ।

मासूमों का होत दुराचार,
बढ़ा है कितना व्यभिचार।

हुए कितने लाचार सब
कर दुष्टों का संहार अब।

खत्म करो दुष्कर्मी को,
भस्म करो विधर्मी को।

सजे फिर से कुरुक्षेत्र,
हे शंकर खोलो त्रिनेत्र।

©पंकज प्रियम