Sunday, September 22, 2019

659. स्वच्छ गाँव

स्वच्छ गाँव
हर कोई, हर रोज, हमेशा
आओ मिलकर हम सब,
प्रयास करें कुछ अब ऐसा।
शौचालय का करें प्रयोग-
हर कोई, हर रोज हमेशा।

तड़प उठता है दिल ये मेरा,
हुआ देश का हाल है कैसा?
खुले खेत में क्यूँ जाते सब,
जानवरों का हो चाल जैसा।
शौचालय का करें उपयोग-
हर कोई, हर रोज, हमेशा।

नहीं खुले में कोई जाएं,
सबको मिलकर समझाएं।
नहीं परिश्रम नहीं कठिन,
नहीं लगता है इसमें पैसा।
शौचालय में ही जाएं-
हर कोई हर रोज हमेशा।

रहना है जो तुम्हें निरोग,
शौचालय का करो प्रयोग।
स्वच्छ तन और स्वच्छ मन -
है मंदिर और धन के जैसा।
शौचालय का करें उपयोग-
हर कोई, हर रोज, हमेशा।

शिशु मल भी होता है गन्दा,
खुला फेंकने का छोड़ो धंधा।
उससे बढ़ता खूब है खतरा
शौच खुले में करने के जैसा।
सुरक्षित निपटारा हो प्रयोग
हर कोई हर रोज हमेशा।

भोजन से पहले शौच के बाद
हाथ है धोना तुम रखना याद।
हरेक बीमारी से बच जाओगे,
हररोज करोगे जब तुम ऐसा।
साबुन का ही सब करें प्रयोग
हर कोई, हर रोज, हमेशा।

चार दिनों का दर्द समझना,
मुश्किल में औरत का रहना।
न रक्त अशुद्ध न वो अपवित्र
मासिक धर्म एक चक्र के जैसा।
सुरक्षित पैड का करें उपयोग,
हर कोई हर रोज हमेशा।

नहीं खुले में कचरा फेंको,
गंदे पानी को यूँ न छोड़ो।
बहुत खतरा इससे भी होता
खुद ही जहर पीने के जैसा।
सोख्ता गड्ढा का करे उपयोग
हर कोई हर रोज हमेशा।

प्लास्टिक रिश्ता छोड़ो तुम,
स्वास्थ्य से नाता जोड़ो तुम।
धरती-जंगल-पानी-जीवन-
प्लास्टिक खतरा कैंसर जैसा।
कपड़े का थैला करें प्रयोग-
हर कोई, हर  रोज हमेशा।
©पंकज प्रियम

No comments: