काश!
ऐ काश! कभी ऐसा होता,
मेरे ख़्वाबों के जैसा होता।
धरती पर चाँद उतर जाता,
अम्बर से ख़्वाब सँवर जाता।
जीवन ये सोना खरा होता,
ऐ काश! कभी ऐसा होता।
फूलों से खिला चेहरा होता,
हर दिल में प्यार भरा होता।
न आदमी कोई डरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।
न जात धर्म का पाश कोई,
न ऊंच-नीच अहसास कोई
न मज़हब का पहरा होता,
ऐ काश! कभी ऐसा होता।
बस प्यार मुहब्बत की बातें,
सपनों से सजी होती रातें।
हर दिन भी सुनहरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।
नफऱत न यहाँ कोई करता,
भूखा न यहाँ कोई मरता।
भ्रष्टाचार नहीं गहरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।
फूलों सा महकता हो जीवन,
खुशियों से भरा हो आँगन।
यह वक्त यूँ ही ठहरा होता।
ऐ काश! कभी ऐसा होता।
©पंकज प्रियम
No comments:
Post a Comment