करे नीलाम जो इज्ज़त, नहीं व्यवहार वो अच्छा,
तमाशा जो बने चाहत, नहीं है प्यार वो अच्छा।
बहे माँ-बाप के आँसू, अगर औलाद के कारण-
नहीं औलाद वो अच्छी, नहीं संस्कार वो अच्छा।।
नुमाईश हो अगर दिल की, नहीं वो प्यार कहलाता
करे माँ- बाप को रुसवा, नहीं अधिकार कहलाता।
मुहब्बत नाम है संयम, मुहब्बत त्याग है जीवन-
दिलों को जोड़ देता जो, वही तो प्यार कहलाता।।
करो तुम प्यार जिससे भी, तुम्हें अधिकार है साक्षी,
उछालो ना मुहब्बत तुम, नहीं यह प्यार है साक्षी।
तुम्हें जन्मा तुम्हें पाला, पिता को खूब दी इज्ज़त-
सरे बाज़ार किया नंगा, अरे धिक्कार है साक्षी।।
सुनो ऐ अंजना कश्यप, करो तुम काम ना ऐसा,
किसी की आँख के आँसू, करो नीलाम ना ऐसा।
नहीं अख़बार ये कहता, नहीं टीवी कभी कहती-
ख़बर की रेस में रिश्ता, करो बदनाम ना ऐसा।
©पंकज प्रियम
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