Tuesday, July 23, 2019

609.,सूखा सावन

सूखा सावन

सावन भी है सूखा साजन, जैसे गुजरा आषाढ़।
खेतों में है पपड़ी सूखी, जैसे पसरा सूखाड़।

कहीं-कहीं में सूखी नदिया, कहीं पे आया बाढ़।
सूखे में कोई रोता देखो, कोई डूबा रोये दहाड़।

आसमान से शोले बरसे, धरती आग उगलती है,
बरखा के इस मौसम में भी, धरती भाँप उगलती है।

सावन में हरियाली कैसे, वसुधा बूँद तरसती है,
सूखे खेतों को देख-देख, आँखे कृषक बरसती है।

हरी चूड़ियाँ कैसे खनके, रूठा बैठा साजन है,
मोर-पपीहा कैसे नाचे, सूखा-सूखा सावन है।

ऐ बादल तू कहाँ छुपा, किस देश में जाके बैठा है,
हाहाकार मचा है जग में, तू क्यूँ कर ऐसे ऐंठा है।

ऐ बरखा तू क्यूँ रूठी है, आके जल बरसाओ ना,
सावन की हरियाली दे दो, ऐसे दिल तरसाओ ना।

खेतों में अब पानी भर दो, बूँद-बूँद लहराओ ना,
सावन में जो साजन झूमे, ऐसी घटा गहराओ ना।

दूँगी तुझको लाख दुवाएँ, मेरे आँगन बरसो ना,
मिलेगा तुझको तेरा साजन,ऐसे तू भी तरसो ना।

©पंकज प्रियम
23 जुलाई 2019

1 comment:

Sweta sinha said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!