शिकायत
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
अंतर होता है जिनकी
कथनी और करनी में।
देश में छुपे उन गद्दारों से
जो खाते हैं भारत की
रहते हैं भारत में पर
बात करते पाकिस्तान की।
करते मदद आतंकी को।
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
देश के उन बुद्धिमानों से
छद्मवेश सेक्युलर वालों से
जिनका विरोध होता सेलेक्टिव
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
तुष्टीकरण करने वालों से
वोटबैंक सियासत करने वालों से
हाँ शिकायत है मुझे उनसे
मानव वेश में छुपे आदमखोरों से
नोंचते, खरोचते जो मासूमों को,
सौदा करते जिस्मों का
बिक जाते जो चंद सिक्कों में
शिकायत है मुझे उनसे
उन दरिंदे माँ और बापों से
जो बेटे की चाहत में कत्ल करते
कोख में अजन्मी औलादों को।
शिकायत है उन औलादों से
जो छोड़ देते हैं तन्हा
अपने बूढ़े माँ-बाप को।
शिकायत है इस सिस्टम से
सड़ी लचर व्यवस्था से
शिकायत है उस न्यायालय से
गरीबों को देती है सिर्फ तारीख़
और खोल देती दरवाजा
आतंकवादी के लिए आधी रातों को।
और शिकायत करूँ मैं कितनी
तारों से भी संख्या ज्यादा,
गहरी सागर के जितनी।
छोड़ो शिकवा और शिकायत
करो बस दिल से मुहब्बत
मिट जाएगी सारी नफ़रत।
©पंकज प्रियम
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