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Thursday, October 25, 2018

464.शरद पूर्णिमा

शरद पूर्णिमा

धवल चाँदनी, शरद पूर्णिमा
सकल आसमां, सरस् चंद्रमा।
बरस रही है सुधा भी झर झर
अँजुरी भर भर उसको पी लो।

पुलकित धरती,हर्षित काया
मुग्ध हुआ देख अपनी छाया
निशा शबनमी हुई है निर्झर
अँजुरी भर भर उसको पी लो।

रजत वर्ण से हुई सुशोभित
शरद पूर्णिमा निशा तिरोहित
अमृत कलश हुआ है हर हर
अँजुरी भर भर उसको पी लो।

दिवस ये पावस,सरस् समंदर
उठा रहा ज्वार दिल के अंदर
चमक रही चाँदनी भी भर भर
अँजुरी भर भर उसको पी लो।

©पंकज प्रियम

Tuesday, October 23, 2018

463.दीप जलाओ

स्वच्छता अभियान में हो रही साफ सफाई
थोड़ी पर्यावरण की भी चिंता कर लो भाई।

कुछ ही दिनों में आनेवाली है शुभ दिवाली
पटाखों से फैलेगी हरओर दुर्गंध धुआँ काली।

धूम धड़ाको से मचेगा कितना तब शोर
ध्वनि-वायु प्रदूषण फैलेगा तब हरओर।

नहीं रखना क्या?पर्यावरण का ध्यान!
तो फिर आज ही मन में  लो यह ठान।

बम पटाखों की तुम करो हवा टाइट।
चायनीज लाइट को कहो गुडनाईट ।

हर घर में मिटटी के दीप जलाओ
एक गरीब के घर चूल्हा जलाओ।

घर का बना पुआ पकवान खाओ
मिलावटी खोवे से खुद को बचाओ।

©पंकज प्रियम

Monday, October 15, 2018

460.हादसे

वक्त के हाथों बड़ा लाचार हूँ
हाँ मैं हादसों का शिकार हूँ।

अपनों की खातिर मरते मरते
अपनों से ही पाया दुत्कार हूँ।

जब जब चाहा बेहतर करना
पाया असफलता का द्वार हूँ।

तमन्नाओं की हर ख़्वाहिश में
किया स्वयं कहाँ स्वीकार हूँ।

कौन अपने?कौन पराये यहाँ
रोज इन सवालों से दो चार हूँ।

जब भी निकलता हूँ सफ़र में
हुआ मैं हादसों का शिकार हूँ।

©पंकज प्रियम

Thursday, October 11, 2018

457.मीरा के घनश्याम

मीरा के श्याम

यशोदा के लल्ला कान्हा
राधा के माधव घनश्याम
गोपियों के  कृष्ण कन्हैया,
मोहन बने मीरा के श्याम।

मीरा रानी का जीवन
समर्पित कान्हा के नाम
राजभोग कर तर्पण
खुद अर्पित घनश्याम।

छोड़ महल बन जोगन
गिरधर को सौंपी जान
हरिनाम का कर भजन
हंसकर किया विषपान।

©पंकज प्रियम

456.विहान

विहान

घर घर नारी का अपमान
पल पल टूटता अभिमान
सिसक रहा बचपन यहाँ
न जाने कब होगा विहान?

सूख रहे सब खेत खलिहान
बंजर जमीं,तपता आसमान
कर्ज़ के दलदल सब है फंसा
न जाने कब होगा कल्याण?
       
सरहद पे रोज मरता जवान
भूखे पेट रोज मरता किसान
सियासत का घनचक्कर यहाँ
पल पल खुद से डरता इंसान।

©पंकज प्रियम

455.शक्ति

शक्ति

मन की शक्ति बढ़े तो बेहतर
तन की शक्ति का क्या है?
उसे तो राख में मिल जाना है।

मन की शक्ति से जीत है
मन की शक्ति से ही हार
जंग जो मन की जीत ली
तन की फिर कैसी हार!

मन की शक्ति से बड़ी
कहाँ कोई और तलवार।
मन की शक्ति जो करे
कहाँ कोई करे हथियार।

©पंकज प्रियम

454.#Me Too

Me Too
हर शख्स पर देखो सवाल हो गया
मीटू मीटू पर देखो बवाल हो गया।

उड़ रही हवाईयां सबके अक्स पर
अब कैसा ये देखो बवाल हो गया।

लग रहा दाग़ हर आमो खास पर
उठी उंगलियां तो बवाल हो गया।

उड़ गयी नींद,चैन सुकून भी गया
उठी जो नज़र, तो बवाल हो गया।

रुपहले पर्दे की वो स्याह हक़ीक़त
छपी किताबों में तो बवाल हो गया।

सोचा नहीं था खुलेंगे राज यहां पर
वर्षों बाद खुली तो बवाल हो गया।

क्यूँ तब चुप रही,यूँ सब सहती रही?
इस सवाल पर तो बवाल हो गया।

©पंकज प्रियम

Wednesday, October 10, 2018

452.माँ तुम अवतार धरो

माँ दुर्गा !फिर अवतार धरो
चण्ड मुण्ड का संहार करो
महिषासुर पर तुम वार करो
दुष्टों में फिर हाहाकार करो।
      माँ दुर्गा! फिर अवतार धरो।
बहुत चढ़ा है ताप यहाँ पर
बहुत बढ़ा है पाप यहाँ पर
बहुत बढ़ा सन्ताप यहाँ पर
पापियों का तुम संहार करो
       माँ दुर्गा!फिर अवतार धरो।
घर घर सिसकती एक नारी
हवस भरी नजरों की मारी
तुम समझो उसकी लाचारी
असह्य वेदना से उद्धार करो।
       माँ दुर्गा! फिर अवतार धरो।
सरहद पे मर रहा जवान
कर्ज़ में पीस रहा किसान
मर्ज़ बिना मर रहा इंसान।
इनका बेड़ा तुम पार करो
      माँ दुर्गा! फिर अवतार धरो।
महँगाई तो देखो हुई चरम
हरपल धरती हो रही गरम
बेहयाई पे उतर आई शरम
कुसंस्कृतियो की हार करो
   माँ दुर्गा!फिर अवतार धरो।

Tuesday, October 9, 2018

451.सत्य

सत्य

सत्य का सूरज कभी ढलता नहीं
झूठ के आँचल कभी पलता नहीं
ढंके कुछ पल भले झूठ का बादल
जो सत्य है वो कभी बदलता नहीं।

©पंकज प्रियम

Monday, October 8, 2018

450.धरोहर

धरोहर

हमारे संस्कार
हमारी संस्कृति
बड़ों का प्यार
संयुक्त परिवार
यही तो धरोहर है।
बड़ों का सम्मान
आतिथ्य का मान
छोटे छोटे अरमान
मन्दिर की घण्टी
मस्जिद का अज़ान
यही तो धरोहर है।
आलीशन भवन नहीं
मीनारें छूती गगन नही
नहीं ये नहीं धरोहर है
प्रेम करुणा धर्म जीवन
सहिष्णुता कर्म समर्पण
प्रेम में जो जीवन तर्पण
वही तो धरोहर है।
©पंकज प्रियम

Sunday, September 30, 2018

440.रंग भरे जीवन

अक्सर ख़्वाबों में जो है आता
मस्तिष्क पटल पर वो है छाता
चल पड़ती है तब कूँची अपनी
खुद कैनवास पर छप है जाता।

ख़्वाबों का तुम अब खेल देखो
इन रंगों का तुम अब मेल देखो
कोरा कागज़ जिंदा हो जाएगा
कागज़ पे चलती अब रेल देखो।

सारे ख़्वाब हक़ीक़त से लगते
तस्वीरों की जब रंगत करते
रहता कहाँ तब कोरा जीवन
दिल में रंग मुहब्बत के भरते।

,©पंकज प्रियम

Saturday, September 29, 2018

440.गाँव

गांव

चहुँ ओर है छटा हरियाली
गाँव की हर बात निराली।

चर्चा होती है दुनिया जहान
चौपाल की अलग है शान।

हर घर खेती हर घर किसान
धान भरे खेत-खलिहान।

घर घर खबर छापे अख़बार
पनघट पे जब जुटती नार।

चूल्हा चौखट से घर परिवार
ग्रामीण जीवन लघु संसार।

©पंकज प्रियम

Friday, September 28, 2018

438.नील गगन

नील गगन

नीलगगन अलमस्त पवन
महक उठे सब चन्दन वन
दूर गगन करे पंछी विहार
चहक उठा तब अन्तर्मन।

चढ़ उठी जब नील गगन
मद्धम मद्धम सूर्य किरण
बहक उठी जब से बयार
महक उठा तब अन्तर्मन।

अम्बर खिला नील गगन
पुलकित हुए वन उपवन
वसुधा भी जब हर्षित हुई
बहक उठा तब अन्तर्मन।

©पंकज प्रियम

Thursday, September 27, 2018

435.अपराजिता

नारी तू अपराजिता

भला किसने कभी तुमसे
यहां कोई जंग है जीता
सदा ही हार मिली सबको
नारी तुम सदा हो अपराजिता।

जीत लेती हो मौत को
नवसृजन करती सह के
नौ माह की प्रसव वेदना।
पुरुष कहाँ तुमसे कभी जीता।
नारी तुम सदा हो अपराजिता।

कहाँ सुकून मिला किसको
यहां अपमानित कर तुझको
द्रौपदी बन महाभारत रचती
कभी रामायण की तुम सीता
नारी तुम सदा हो अपराजिता।

हर युग में तुझको सबने तोड़ा
लेकिन हिम्मत नहीं तुमने छोड़ा
अहिल्या सा शापित जीवन
कभी अग्निपरीक्षा देती सीता
नारी तुम सदा हो अपराजिता।

माँ, बेटी,पत्नी और बहना
हर घर की तुम हो गहना
सागर की लहरों सा समर्पण
अविरल बहती तुम हो सरिता
नारी तुम सदा हो अपराजिता।
©पंकज प्रियम

Wednesday, September 26, 2018

434.खुशियां

उम्र के आखिरी मोड़पर
सब दुनियादारी छोड़कर
आ मिली जब दो बहना
फिर खुशी का क्या कहना?

गुजरी यादें सब ताजा हुई
बीती बातें जब साझा हुई
खिलखिला पड़ी दो बहना
फिर हँसी का क्या कहना?

जाने ऐसी क्या बात हुई
ठहाकों की बरसात हुई
दो बहनों का यूँ मिलना
लगा फूलों का खिलना।

चार दिनों का ताना बाना
खुशी-गम का आना जाना
जिंदगी आज जी ले बहना
कल का फिर क्या है कहना?
©पंकज प्रियम

Monday, September 24, 2018

433.रणचण्डी

भयानक रस
रणचण्डी

लूटती देख बेटी की अस्मत
माँ दौड़ी बन चण्डी आई
आँखों से बरसाती शोले
ले कृपाण रण चण्डी आई।

आँख लाल,बड़ी विकराल
बनकर काल शिखण्डी आई
बांध चुनरी अपने कपाल
लेकर भाल रण चण्डी आई।

चढ़ी उछल वह छाती पर
चढ़ी शेरनी मानो हाथी पर
काटे पैर और काटे हाथ
कटकटाते दाँत,खिंचे आँत।

फाड़ी छाती,फोड़ा कपाल
पहन लिया मुण्ड का माल
रक्त रंजित हो बिखरा बाल
उछाल दिया आँखे निकाल।

काट काट हवसी की लाश
फेंक दिया कुत्तों के पास
नजर दौड़ाया आसपास
कर रही हवसी की तलाश।
©पंकज प्रियम

432.सुई धागा

बहुत फट गए अपने रिश्ते
कुछ नए कुछ पुराने रिश्ते
उन से फिर मिलना होगा
फिर उनको सिलना होगा।

आसानी से ये नहीं मिलेंगे
#सुई धागा से नहीं सिलेंगे
दिल से दिल मिलना होगा
फिर उनको सिलना होगा।

सुई का काम चुभोना है
धागे का काम पिरोना है
एक दूजे में मिलना होगा
प्रेम से सब सिलना होगा।

आओ तुम सुई बन जाओ
मुझको भी खुद में समाओ
फूलों को भी खिलना होगा
रिश्तों को भी सिलना होगा।

©पंकज प्रियम

Saturday, September 22, 2018

431.गंगा




गंगा
सुनो!गंगा ने है सबको पुकारा
क्या तुझको मन नहीं धिक्कारा
धोया है इसने हर पाप तुम्हारा
ढोया है इसने  सन्ताप तुम्हारा।
शीतल निर्मल कल कल गंगा
करते सब इसको हरपल गन्दा
कहां बहती अब अविरल धारा!
ढोकर चलती अब कचरा सारा।
स्वर्ग से उतरी बनके मोक्ष द्वार
धरा ने दिया प्यार इसे बेशुमार
सगर पुत्रों को तब जिसने तारा
आज हमने उस गंगा को मारा।
धोती रही जो सबके पाप गंगा
हो गयी मैली खुद आज गंगा
माँ बनके दिया सबको सहारा
सिमटता अब अपना किनारा।
बना लिया है अब कैसा धंधा
बोतल में बिकने लगी है गंगा
रुक गयी अब अविरल धारा
प्रदूषित हो गया है जल सारा।
करते रहोगे जो इसको गन्दा
कहीं रूठ न जाय तब गंगा
कर रही प्रकृति तुम्हें ईशारा
मिटेगा अब अस्तित्व तुम्हारा।
प्रदूषण को दूर भगाना होगा
गंगा को स्वच्छ बनाना होगा
तभी बचेगा अस्तित्व हमारा
गंगा बहेगी जो अविरल धारा।
कदम से कदम मिलाना होगा
कचरे से मुक्ति दिलाना होगा
स्वच्छ हो जब इसका किनारा
तभी बहेगी गंगा निर्मल धारा।
©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"


Wednesday, September 19, 2018

428.तुम

तुम

किया है जो वादा मुझसे
बस उतना ही निभाना तुम।

कुछ और नहीं इरादा मेरा
हाथों से हाथ मिलाना तुम।

लकीरों पे नहीं रहा भरोसा
मेरी  किस्मत बनाना तुम।

कोरा कागज़ है जीवन मेरा
प्रेम की स्याही गिराना तुम।

तोड़ दूँ मैं सारे जग का घेरा
यूँ हौसला मेरा बढ़ाना तुम।

©पंकज प्रियम

Monday, September 3, 2018

424. कान्हा को आना होगा

आना होगा

कान्हा तुम्हें आना होगा
यमुना को बचाना होगा
हुआ विषाक्त जल सारा
प्रदूषण को मिटाना होगा।
कान्हा...
यहाँ मचा है प्रलय बहुत
हो रहा दर्द असह्य बहुत
प्रलयंकारी इन बाढ़ों से
कश्ती पार लगाना होगा
कान्हा..
बढ़ गया अब पाप बहुत
चढ़ गया है संताप बहुत
पल पल दबती वसुधा से
पाप का बोझ हटाना होगा.
कान्हा....
सड़कों पे होता चीर हरण
अबलाओं का मान मर्दन
दुःशासन के खूनी पंजो से
द्रौपदी को बचाना होगा।
कान्हा...
कैसा छिड़ा है ये धर्मयुद्ध
सब खड़े अपनों के विरुद्ध
कर्मपथ से डिगते पार्थ को
गीता का पाठ पढ़ाना होगा
कान्हा..
घाटी में है भटका नौजवान
पत्थर खाता अपना जवान
राह से भटकते युवाओं को
सही मार्ग तो दिखाना होगा
कान्हा..
सच है युद्ध कोई पर्याय नहीं
बिन इसके कोई उपाय नहीं
पापियों से भरी रणभूमि में
अब चक्र तुम्हें उठाना होगा।

कान्हा तुम्हें तो आना होगा।
©पंकज प्रियम
3.9.2018