शरद पूर्णिमा
धवल चाँदनी, शरद पूर्णिमा
सकल आसमां, सरस् चंद्रमा।
बरस रही है सुधा भी झर झर
अँजुरी भर भर उसको पी लो।
पुलकित धरती,हर्षित काया
मुग्ध हुआ देख अपनी छाया
निशा शबनमी हुई है निर्झर
अँजुरी भर भर उसको पी लो।
रजत वर्ण से हुई सुशोभित
शरद पूर्णिमा निशा तिरोहित
अमृत कलश हुआ है हर हर
अँजुरी भर भर उसको पी लो।
दिवस ये पावस,सरस् समंदर
उठा रहा ज्वार दिल के अंदर
चमक रही चाँदनी भी भर भर
अँजुरी भर भर उसको पी लो।
©पंकज प्रियम