समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
सत्य
सत्य का सूरज कभी ढलता नहीं झूठ के आँचल कभी पलता नहीं ढंके कुछ पल भले झूठ का बादल जो सत्य है वो कभी बदलता नहीं।
©पंकज प्रियम
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