Monday, September 3, 2018

424. कान्हा को आना होगा

आना होगा

कान्हा तुम्हें आना होगा
यमुना को बचाना होगा
हुआ विषाक्त जल सारा
प्रदूषण को मिटाना होगा।
कान्हा...
यहाँ मचा है प्रलय बहुत
हो रहा दर्द असह्य बहुत
प्रलयंकारी इन बाढ़ों से
कश्ती पार लगाना होगा
कान्हा..
बढ़ गया अब पाप बहुत
चढ़ गया है संताप बहुत
पल पल दबती वसुधा से
पाप का बोझ हटाना होगा.
कान्हा....
सड़कों पे होता चीर हरण
अबलाओं का मान मर्दन
दुःशासन के खूनी पंजो से
द्रौपदी को बचाना होगा।
कान्हा...
कैसा छिड़ा है ये धर्मयुद्ध
सब खड़े अपनों के विरुद्ध
कर्मपथ से डिगते पार्थ को
गीता का पाठ पढ़ाना होगा
कान्हा..
घाटी में है भटका नौजवान
पत्थर खाता अपना जवान
राह से भटकते युवाओं को
सही मार्ग तो दिखाना होगा
कान्हा..
सच है युद्ध कोई पर्याय नहीं
बिन इसके कोई उपाय नहीं
पापियों से भरी रणभूमि में
अब चक्र तुम्हें उठाना होगा।

कान्हा तुम्हें तो आना होगा।
©पंकज प्रियम
3.9.2018

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