अक्सर ख़्वाबों में जो है आता
मस्तिष्क पटल पर वो है छाता
चल पड़ती है तब कूँची अपनी
खुद कैनवास पर छप है जाता।
ख़्वाबों का तुम अब खेल देखो
इन रंगों का तुम अब मेल देखो
कोरा कागज़ जिंदा हो जाएगा
कागज़ पे चलती अब रेल देखो।
सारे ख़्वाब हक़ीक़त से लगते
तस्वीरों की जब रंगत करते
रहता कहाँ तब कोरा जीवन
दिल में रंग मुहब्बत के भरते।
,©पंकज प्रियम
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