वतन की जान है भाषा
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निज सम्मान भाषा है
निज अभिमान है भाषा।
जुबां कितनी भी हो जाए
लबों की शान है भाषा।
जुबां उर्दू हो या हो हिंदी
वतन के माथे की है बिंदी
चाहत हो अगर दिल की
बड़ी आसान है भाषा।
जहां चाहे चले जाओ
भाषा अपनी ले जाओ
मोहब्बत है वतन से तो
वतन की जान है भाषा।
न बोली पे कोई रगड़ा
न भाषा पे कोई झगड़ा
जो शब्दों में संवर जाए
वही तो प्यार है भाषा।
©पंकज प्रियम
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