Friday, February 16, 2018

बैंकों को खा जाते हैं।

बैंकों को खा जाते हैं।
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यहां सिक्कों पे आफत है
वो अरबों डकार जाते हैं।
यहाँ तो लोन मिलता नही
वो बैंकों को ही खा जाते हैं।

जो कर्ज में डूबा किसान है
ज़िल्लत में जीता जान है।
उन्हें बैंक हर रोज डराते है
माल्या मोदी भाग जाते हैं।

अंगूठे पे ही तो चल रहा
सत्ता और शासन यहाँ
ठेंगे से मिलता राशन यहाँ
हर कोई देता भाषण यहाँ।

बैंकों की इनायत तो देखो
हमे किस कदर सताते हैं
उन्ही से मुहब्बत निभाते हैं
जो उन्हें ठेंगा दिखा जाते हैं।

चन्द सिक्कों के बोझ में
किसान फंदा झूल जाते है
और बैंकों को चुना लगा
मोदी माल्या पान खाते हैं।

यहां सिक्कों पे आफत है
वो अरबों डकार जाते हैं
हमारे मेहनत के पैसों से
वो अपना उधार पचाते हैं।
©पंकज प्रियम







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