आया तो नही रामराज्य
पेड़ में चढ़ गया रामराज।
करोड़ों का लगाके चुना
भागा नीरव बोरी साज।
और किसान ये कैसा है
सूखे फ़टे खेत जैसा है
डेढ़ लाख के कर्जे में ही
मरने चढ़ गया रामराज।
यहां तो हररोज मरता
चक्रवृद्धि में किसान है
साधारण ब्याज से भी
सस्ती उनकी जान है।
काश! हर किसान भी
ये चालाकी कर जाता
फिर कोई आत्महत्या
को पेड़ नही चढ़ जाता।
मोदी माल्या सी थोड़ी
वो भी हिम्मत कर जाता
बैंकों को लगाके चूना
वो भी परदेश भाग जाता।
मिनिमम बैलेंस के नाम
कैसे बैंक रोज हड़काता
घोटालेबाजों के तो आगे
तिजोरी ही खोल जाता।
©पंकज प्रियम
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