Friday, February 2, 2018

इश्क़ समंदर

तेरी आंखों में गजब की
समंदर सी मस्ती छाई है
लहराकर वो अजब की
साहिल पे कश्ती आई है।
घनघोर घटा सावन की
तेरी ज़ुल्फ़ यूँ लहराई है।
बरस ही पड़ेगी अबकी
ऐसी छटा बिखराई है।
नाज तेरे लबों की
उफ़्फ़!!!
क्या कहने
पंखुड़ी गुलाब सी है।
रस से भीगी रसा सी
बड़े अदा से मुस्काई है।
होठों में हंसी गालों पे
डिम्पल बन आई है।
तन में शोलों की गरमी
मन मे फूलों की नरमी
वदन खुशबू महकाई है
यूँ लहराकर चलना तेरा
देख नागिन भी शरमाई है।
और कहूँ क्या मैं तुझको
हर अंग में मस्ती छाई है।
तेरी आँखों मे गजब की
समंदर सी मस्ती छाई है।
तू ख्वाबों की इश्क़ समंदर
मेरी चाहत ने गोता लगाई है।

©पंकज भूषण पाठक 'प्रियम'





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