Saturday, February 17, 2018

निशानी है बहुत

356.निशानी है बहुत
हार की खातिर तेरी ये बेईमानी है बहुत
तेरी हरचाल ही जानी पहचानी है बहुत।
तेरे ख्यालों से पहले सब जान जाता हूँ
तुम्हारे दिल में ही छुपी कहानी है बहुत।
तुम्हारे हर कदम को पहचान जाता हूँ
बनके अनजान करती नादानी है बहुत।
क्या छुपाओगे तुम, हमसे हाल अपना
तेरी जिंदगी में बिखरी परेशानी है बहुत।
कभी फुर्सत मिले तो ज़ानिब आ जाना
तुझे अपनी भी कहानी,सुनानी है बहुत।
तेरे ही दर्द से जख़्म हुआ है यहाँ गहरा
मेरे दिल में जख़्म की निशानी है बहुत।
बहुत गुरुर न तुम,अपने हुश्न पे यूँ करना
इन आँखों ने यहाँ देखी,जवानी है बहुत।
इश्क़ समंदर भी पार उतर आया प्रियम
मेरी कहानी की दुनियां दीवानी है बहुत।
©पंकज प्रियम
31.5.2018

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