Tuesday, February 27, 2018

मुख़्तसर जिंदगी

जिन्दगी को हमने यूँ मुख़्तसर कर लिया
चन्द सिक्कों में ही जीवन बसर कर लिया।

औरों की हंसी में ही छुपी है खुशी अपनी
गैरों के दर्द से आंखों में आंसू भर लिया।

फूल ही नही, कांटों से भी निबाह है अपनी
कभी महल  कभी राहों में गुजर कर लिया।

हरपल हरक्षण को जी है मैने जिंदगी अपनी
कभी ख्वाबों में कभी जमीं पे घर कर लिया।

आंखों में ही अक्सर गुजरी है रात अपनी
जिंदगी की जंग लड़ते ही सहर कर लिया।

छोटी उम्र में ही पढ़ ली पूरी जिंदगी अपनी
लम्हों को चुनकर ही अपना शहर कर लिया ।

सूरज सा तपता दीप से रोज जलता जीवन
जीवन तपिश ने जिंदगी मे असर कर लिया।

जिंदगी को हमने यूँ मुख़्तसर कर लिया
लबों की हंसी में जीवन बसर कर लिया।
©पंकज प्रियम
27.02.2018

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