कैसे मनाऊं होली?
कैसे मनाऊं कान्हा मैं होली
सरहद पे रोज चलती गोली।
रईसजादों के चारपहिया तले
कुचल जाती है मासूम बोली
कैसे मनाऊं कान्हा मैं होली।
हवस भरी हाथो से अबला की
हर रोज फट रही चुनरी चोली
घर मे भी सजी सँवरी बेटी की
दहेज महफ़िल में लगती बोली
कैसे खेलूं कहो कान्हा मैं होली।
स्वानों को मिलता दूध बिस्किट
भूखे पेट अकुलाते अबोध बच्चे
हजारों में भी नही भरती झोली
कैसे करूँ हंसी और ठिठोली
कैसे मनाऊं कान्हा मैं होली।
©पंकज प्रियम
28.2.2018






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