Tuesday, February 6, 2018

प्रेम न हाट बिकाय...


प्रेम न हाट बिकाय ...
              पंकज भूषण पाठक 'प्रियम' 










   आज पूरी दुनिया में वेलेंटाइन डे का नशा सा छा गया है ये मार्केटिंग का ही जलवा है की बच्चे बूढ़े हर किसी की जुबान पर इसका नाम चढ़ गया है. हर साल सात से चौदह फरवरी तक प्यार के सप्ताह के रूप में मनाया जाने लगा है जिसे आज की पीढ़ी मस्ती का एक मौका समझ बैठे हैं. रोज डे,प्रोपोज डे,प्रोमिस डे ,किस डे ,हग डे,चोकलेट डे ,टेडी डे  और वेलेंटाइन डे . यानि की हर दिन का  मार्केटिंग फंडा.ये पाश्चात्य संस्कृति की ही देन है जो हमारी संस्कृति और समाज को विकृत करती जा रही है.इसमें कार्ड ,गिफ्ट्स कंपनियो के साथ मीडिया की भी बड़ी भूमिका रही है.वेलेंटाइन को मौज मस्ती का दिन समझने वालो को प्रेम की समझ भी नही होती.गिफ्ट देकर आई लव यू कह समझते हैं की इश्क कर लिया .अरे प्रेम कोई बताने की चीज है क्या ये तो बस एहसास है जिसे दिल खुद पढ़ लेता हैं.वेलेंटाइन को बाजार ने एक मौका के रूप में भुनाने का काम किया है.बड़े बड़े आयोजन होने लगे हैं जहाँ धूम धड़ाके और मौज मस्ती ,अश्लीलता की हदों को पार करता भोंडा नृत्य के अलावा कुछ नही होता. शराब -शबाब और कबाब के बीच मनने लगा है प्रेमोत्सव का पर्व. 14 फरवरी के दिन को लोग प्यार के इजहार का दिन मानते हैं  लोग जो की सेंट वेलेंटाइन का जन्मदिवस है .क्या इजहार -ए-इश्क किसी खास दिन का मोहताज है ?यह तो ऐसी चीज है जो न कही जाती है और न सुनी जाती है सिर्फ और सिर्फ दिल से महसूस करने का नाम है इश्क.आज लोगो ने प्रेम का स्वरुप ही बदल दिया है .लड़कियों का भी फैशन हो गया है की वेलेंटाइन पर कोई घुमाने ले जाय और मंहगी गिफ्ट दे.लडको की बात ही नही करनी उनके लिए तो फ्लर्ट का इससे बढ़िया मौका हो ही नही सकता.पश्चिमी देशो में शादी से पूर्व शारीरिक सम्बन्ध आम है तो क्या हमारे देश की संस्कृति इसकी इजाजत देगी? कभी नही .प्राचीन काल से ही वसंत के आगमन के साथ ही जब आम का पेड़ मंजरो से लद जाता था ,बाग फूलों से भर जाते थे,कोयल अपनी मधुर आवाज में गीत गति थी तब लोग वसंतोत्सव मनाते थे.जो एक दिन नही पुरे माह चलता था.तब प्रेम का स्वरुप अलग और वास्तविक आकार में था. क्योंकि प्रेम तो त्याग -वलिदान ,निश्चल ,मासूम और मर्यादा की सुरत होती है. आज हम भी अगर उसी मर्यादा और संयम से प्रेमोत्सव मनाये तो क्या कहने. लेकिन वासना और छल का समावेश हुआ तो वह जन्नत नही जहन्नुम है.मुंशी प्रेमचंद ने कहा है की -


प्रेम और वासना में उतना ही अंतर है जितना कंचन और कांच में है .
मेरा तो यही ख्याल है की मोहब्बत नाम है मिट जाने का .आईये आपको बताते है की क्या होती है इश्क प्यार और मोहब्बत,दिन क्या होती है इजहार की और परिभाषा क्या होती है प्यार की .

दुनिया लाख बदले नजर बदलती नही यार की 
कोई कुछ भी कहे परिभाषा नही होती प्यार की 
दिल सच्चा हो हर क्षण हर पल पर्व है प्यार की 
कोई दिन खास मुकर्रर  नही होती इजहार की .
                'प्यार' एक खुबसूरत शब्द जहाँ पर दुनिया की सारी सुन्दरता,दौलत,हर वो चीज जो जां से भी अधिक प्यारी होती है आकर सिमट जाती है. लोग न जाने इस लफ्ज को क्या क्या नाम देते हैं कोई इसे खुदा कहता तो कोई इश्वर का वरदान ,किसी के लिए इश्क आग का दरिया है तो किसी के लिए बारिश का पानी .इस एक लफ्ज पर न जाने कितने गाने बने कितनी फिल्मे बनी.कविता, कहानी और गजल बनी.मगर हकीकत तो यही है की प्यार की कोई परिभाषा होती ही नही .प्रेम अपरिभाषित और अनमोल है.                
       हर दिल से एक आवाज निकलती है जो एक दुसरे के दिल को अदृश्य डोर से बांधती है. माँ का पुत्र के प्रति वात्सल्य ,पिता-पुत्र ,पति-पत्नी ,भाई-बहन,प्रेमी-प्रेमिका, आदमी-जानवर यहाँ तक की मालिक और नौकर में भी प्रेम की डोर बंधी होती है. 
    यह ऐसी भाषा है की साधारण मन नही पढ़ सकता है न ही समझ सकता.ये न तो करने की चीज है और न कहने की यह तो बस हो जाता है.किसी के बस की बात नही .न तो किसी के रोकने से रुकता है और न ही कोशिश से जबरन  होता है.  कब ,कहाँ, कैसे और किससे प्यार हो जय कहना मुश्किल है. 
    सदियों से ही महान कवि,लेखक और शायर इश्क पर लिखते आये हैं .सबो ने अपने अपने ढंग से प्रस्तुत किया.शाहजहाँ ने अपने प्रेम की मिशाल पेश करते हुए ताजमहल बना डाला तो हीर-राँझा ,लैला-मजनू और सीरी-फरहद के किस्से आज भी अमर है.
  एक बच्चा भी प्रेम और नफरत की आवाज भली भांति समझता है .मनुष्य की तो बात दूर की प्रेम की भाषा तो निरीह पशु भी जानता है.अगर उन्हें प्रेम से पुकारो तो जां भी देने को तैयार रहते हैं. प्रेम तो बुरे को भी अच्छा इन्सान बना देता है. जीने की वजह बन जाती है मोहब्बत.इसके लिए मर मिटने को भी तैयार रहते हैं. भगवान भी प्रेम के भूखे होते हैं यही कारण है की मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने सबरी के जूठे बेर को भी बड़े प्रेम से खाया था. कृष्ण ने भी कौरव के छप्पन भोग को ठुकरा कर महात्मा विदुर के घर साग और भात खाना पसंद किया था.बिखरे जीवन को संवारती है तो बिरानियों में भी बहार ला देती है मोहब्बत.इसे न तो कोई खरीद सकता है और न ही बाजार में बिकने की चीज है .कबीर ने ठीक ही कहा है --
प्रेम न बारी उपजे,प्रेम न हाट बिकाय 
राजा प्रजा जेहि रुचे शीश देई ले जाय. 
जीवन में अगर प्रेम नही तो वह जीवन नही सुखा दरख्त ही है जिसपर पंछी भी बसेरा नही करते.मौजूदा दौर में प्रेम की परिभाषा ही बदल गयी है
.ढाई आखर को लोग बड़े बेढंगे रूप से पेश कर रहे हैं .प्रेम का अर्थ सिर्फ रोमांस ,वासना या शारीरिक मिलन हो गया है. आज बस मौजमस्ती ,फ्लर्टिंग,टाइमपास और छलावा बन कर रह गया है.आज की युवा पीढ़ी -ये नही, वो नही, कोई और सही की धुन में रहते हैं.एक से दिल भरा तो दुसरे की तरफ कदम बढ़ाते है.उन्हें क्या मालूम प्यार क्या होता है .अरे! प्यार तो राधा ने कृष्ण से किया ,मीरा ने मोहन से किया,हीर ने राँझा से और लैला ने मजनू से मोहब्बत की.प्यार हो जाता है मगर उसे निभाना आसान नही है.इश्क में लुट जाने का जूनून होता है . सिर्फ आई लव यु कह के आज के लड़के लड़कियां समझते है की प्यार कर लिया .अरे यह तो एक एहसास है जो खामोश लबो से भी अपनी मोहब्बत का पैगाम दे देती है जिसे दिल पढ़ लेता है.आँखों के रस्ते दिल में उतर जाने का एहसास मोहब्बत है. 
प्यार के सही अर्थ को समझना बड़ा मुश्किल है .अगर लोग इसके सही अर्थ को समझे और निस्वार्थ भाव से अपने दिल की बात सुने तो यकीनन धरती पे स्वर्ग उतर आएगा. 

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