दास्तान कर्ज़ की ये सुनाते है
सबको एक राह मोड़ जाते हैं
लेकर अमीर देश छोड़ जाते हैं
बेचारे गरीब देह छोड़ जाते हैं।
किश्त तो आम के किरदार है
कर्ज़ तो खास के हकदार हैं
किसानों को कर्ज़ माफ़ी नही
रईस तो बैंक के ही सरदार हैं।
बैंकों को लगाके चूना देखो
सारे रईस देश छोड़ जाते हैं
फिर उनके कुकर्मों का बेल
गरीबों के सर फोड़ जाते हैं।
बैंक भी तो बड़े निराले हैं
कैसे जनधन रखवाले हैं
कर्ज़ की थाली सजाकर
रईसों के बीच होड़ लगाते है।
खेतों में बीज बोने अन्नदाता
बैंकों की रोज दौड़ लगाते हैं
चक्रवृद्धि का बढ़ता ब्याज
गरीबों की कमर तोड़ जाते हैं।
मोदी माल्या बैंकों को ठेंगा
दिखाकर देश छोड़ जाते हैं
और बेचारे किसान गरीब
कर्ज़ में डूब देह छोड़ जाते हैं।
©पंकज प्रियम
19.02.2018
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