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सोचता हूँ कभी भगवान ने
पेड़ पौधे जंतु इन्सान बनाया
सबमें रूप रंग दे जान बसाया
फिर इनमें ऐसा क्यूँ भेद जगाया
जाति धर्म सम्प्रदाय दंगे भेद
क्या ईश्वर ने ही बनाया?
सोचता हूँ फिर
सब तो उसकी ही संतान है
सब मे बसता उसकी जान है
फिर किसने ये रंग लगाया
किसने ये जाति भेद जगाया
हम चाहते है जिसे पूजते हैं
अपना दर्द ,प्राण मानते हैं
पर जाति धर्म की बेड़ियों
खुद बंधा लाचार पाते है
अपना नही बना पाते हैं
कोई राम कोई रहीम मानते हैं
उसकी ही संतान को मारते हैं
कितना भला होता जहां में
एक समाज एक धर्म
एक भगवान होता
न मन्दिर न मस्जिद
न चर्च न हो गुरुद्वारा
सबकुछ सबके दिल मे
फिर क्यूँ ढूंढा जग सारा
सब जानते फिर भी नही मानते हैं
हरबार एक नया प्रश्न पूछ डालते हैं
©पंकज प्रियम
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