Wednesday, February 20, 2019

528.वतन के नाम

1222 1222 1222 1222

वतन के नाम ये जीवन, मुझे भी आज करने दो
वतन पे जां लुटाकर के, दिलों में राज करने दो।

वतन के नाम ही जीना, वतन के नाम ही मरना,
वतन के साथ जीवन का,नया आगाज करने दो।

किया है पीठ पर हमला, पड़ोसी देश ने अक्सर
उसी पागल पड़ोसी का , मुझे ईलाज करने दो।

बहे हैं खून के आँसू, मिले जो ज़ख्म भारत को,
दबा है दर्द जो दिल में, उसे आवाज़ करने दो।

सहेंगे और हम कितने, जवानों की शहादत को
प्रियम के भाव जो उमड़े,उसे अल्फ़ाज़ करने दो।

©पंकज प्रियम

2 comments:

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/02/110.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

पंकज प्रियम said...

sadhnaywad