Sunday, September 1, 2019

641.राज़

ग़ज़ल


221 1222 221 1222

इक राज़ हमारा है, इक राज़ तुम्हारा है,

जो राज़ छुपाया वो अंदाज़ तुम्हारा है।


तेरी खुशबू को हम यूँ हर रोज हवा देते,

लिखते हर गीतों में अल्फाज़ तुम्हारा है।


तेरे कदमों की आहट पहचान सदा लेते,

मेरी हर धड़कन बजता साज़ तुम्हारा है।


मुझसे मिलने की चाहत सब रखते हैं पर,

मेरे दिल पर बस चलता राज तुम्हारा है।


ये वक्त हुआ है किसका तुम बतलाओ,

कल राज प्रियम का था आज तुम्हारा है।

©पंकज प्रियम

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