समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मुक्तक मात्रा भार 30 जान हथेली पे रखकर के, जो करते देश की हैं रक्षा। सच्चे वीर सिपाही हैं वो, दिल होता इनका है सच्चा। नहीं मौत से घबराते, नहीं किसी से हैं वो डरते, लिपटे धरती भारत के, जैसे माँ गोदी में बच्चा।।
©पंकज प्रियम
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