नमन साहित्योदय
ग़ज़ल
2122 1122 1122 22
क़ाफ़िया-आई
रदीफ़- की
खो गया था मैं कभी प्यार में हरजाई की,
मैं समझ पा न सका बात वो रुसवाई की।
वो सदा प्यार जता यार बुलाता हमको,
थाह मैं पा न सका प्यार में गहराई की।
ख़ूब लूटते वो रहे प्यार दिखा कर मुझको,
आ गया था मैं तभी बात में सौदाई की।
मैं सदा फूल बहारों से सजाया उसको,
ज़िन्दगी में वो मगर यार सदा खाई की।
इश्क़ का रोग प्रियम और सताता कितना,
होश आया तो तभी प्यार की भरपाई की।
©पंकज प्रियम
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